________________ 212 वर्ण, जाति और धर्म लेश्या बनी रहती है। किसी हदतक यही नियम देवपर्यायसे आनेवालेके लिए भी है / अब विचार कीजिए कि वर्तमानमें जो चार वर्णों की व्यवस्था चल रही है उसके आधारसे नरकसे निकलनेवाला वह पापबहुल अशुभ लेश्यावाला जीव महापुराणके अनुसार किस वर्णमें उत्पन्न होगा और देवपर्यायसे निकलनेवाला वह पुण्यबहुल शुभ लेश्यावाला जीव किस वर्णमें उत्पन्न होगा / संयमासंयम या संयमको दोनों ही प्राप्त करनेवाले हैं। किन्तु नरक और देवगतिमें दोनों ही मिथ्यादृष्टि रहे हैं। श्रागममें यह नियम तो अवश्य किया है कि नरकसे निकलकर कोई जीव नारायण, प्रतिनारायण, बलभद्र और चक्रवर्ती नहीं होता। यह नियम भी किया है कि नरक और देवगतिसे निकलकर कर्मभूमिज मनुष्य और तिर्यञ्च ही होता है। साथ ही देवोंके लिए यह नियम भी किया है कि दूसरे कल्पतकके देव एकेन्द्रिय भी होते हैं। किन्तु वहाँ यह नियम नहीं किया है कि नरक या स्वर्गसे निकलनेवाला अमुक योग्यतावाला जीव तीन वर्णमें उत्पन्न होता है और अमुक योग्यतावाला जोव शूद्रवर्णमें उत्पन्न होता है, इसलिए संसारी छद्मस्थ प्राणियों द्वारा कल्पित इन वर्गों के आधारसे मोक्षमार्ग सम्बन्धी किसी भी प्रकारकी व्यवस्था बनाकर उसको प्रमाण मानना उचित नहीं प्रतीत होता / यदि यही मान लिया जाता है कि पापी और अशुभलेश्यावाले जीव शूद्र होते हैं तथा पुण्यात्मा और शुभलेश्यावाले जीव ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य होते हैं तो विचार कीजिए, नरकसे निकलनेवाला वह अशुभ लेश्यावाला पापी जीव जो संयमको धारण कर उसी भवसे मोक्ष जानेवाला है शूद्रवर्णमें उत्पन्न होगा या नहीं ? इसके साथ सम्भव होनेसे इतना और मान लीजिए कि अपनी जवानीकी अवस्थामें वह अञ्जनचोरके समान सातों व्यसनोंका सेवन करेगा और जिनागमके मार्गसे दूर. भागनेका प्रयत्न करेगा। किन्तु जीवनके अन्तमें काललब्धि अानेपर एक क्षणमें सन्मार्गपर लगकर बेड़ा पार कर लेगा। यदि कहा जाता है कि ऐसा जीव शूद्भवर्णमें उत्पन्न न होकर ब्राह्मणादि वर्गों में उत्पन्न होगा तो