________________ यज्ञोपवीत मीमांसा 201 ही आमन्त्रित नहीं किया होगा। किन्तु उस समय क्षत्रियों, वैश्यों और -शद्रोंमें जितने सम्यग्दृष्टि श्रावक होंगे उन सबको आमन्त्रित किया होगा। पद्मपुराण और हरिवंशपुराणसे तो इस बातका भी पता लगता है कि भरत महराजने यह आमन्त्रण राजाओंके पास न भेज कर सीधा जनतामें प्रचारित कराया था। अतः जिन्हें यह शंका है कि ब्राह्मण वर्णकी उत्पत्ति केवल क्षत्रिय और वैश्योंमेंसे की गई थी उन्हें इस समाधान द्वारा अपने भ्रमको दूर कर लेना चाहिए। यह बात दूसरी है कि बादमें महापुराणकारने जन्मसे वर्णव्यवस्थाको स्वीकार कर जो व्रतोंको धारण करते हैं वे ब्राह्मण कहलाते हैं इस मान्यता पर एक प्रकारसे पानी ही फेर दिया है। यज्ञोपवीत मीमांसा महापुराणमें यज्ञोपवीत- यज्ञोपवीत क्या है और उसे कौन वर्णका मनुष्य धारण करनेका अधिकारी है इस प्रश्नका विस्तृत विचार करनेवाला महापुराण प्रथम ग्रन्थ है। वहाँ इसे ब्रह्मसूत्र, रत्नत्रयसूत्र और यज्ञोपवीत आदि कई नामों द्वारा सम्बोधित किया गया है / इसकी व्याख्या करते हुए आचार्य जिनसेन लिखते हैं कि सर्वज्ञदेव की आज्ञाको प्रधान माननेवाला वह द्विज जो मन्त्रपूर्वक सूत्र धारण करता है वह उसके व्रतोंका चिह्न है / वह सूत्र द्रव्य और भावके भेदसे दो प्रकारका है। तीन लरका जो यज्ञोपवीत है वह उसका द्रव्यसूत्र है और हृदयमें उत्पन्न हुए सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र गुणोंरूप जो श्रावकका सूत्र है वह उसका भावंसूत्र है।' उन्होंने ब्राह्मणवर्ण की उत्पत्तिके प्रसङ्गसे यह भी लिखा है कि भरत महाराजने पद्मनामको निषिसे प्राप्त हुए एकसे लेकर ग्यारह तक की संख्यावाले ब्रह्मसूत्र नामक सूत्रोंसे उन ब्राह्मणोंको चिह्नित किया। इस 1. 50 36, श्लो० 64-65 / 2. प० 38, श्लो० 21 / /