Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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AISASARASHISHASHANIDEVOTIDARSHAN
तत्त्वार्य महाशास्त्रकी रचना किसी खास शिष्यके संबंधसे नहीं हुई है किन्तु आचार्य महाराजका यह
६ भाष उद्देश्य जान पडता है कि इस संसाररूपी विशाल समुद्र में अनंत पाणिगण डूबे हुए हैं उन सबके लिये 8 हितकारी उपदेश सिवाय मोक्ष मार्गके उपदेशके दूसरा हो नहीं सकता इसीलिये उन्होंने मोक्षमार्गके ॐ व्याख्यानकी इच्छा प्रथम सूत्रसे प्रगट की है।
' सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः ॥१॥ अर्थ-सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र इन तीनोंकी एकता ही मोक्षका मार्ग है।
प्रणिधानविशेषाहितद्वैविध्यजनितव्यापारं तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनं ॥१॥ उपयोगकी विशेषतासे निसर्ग और आधिगम इन दो कारणोंके द्वारा जो पदार्थ जिस रूपसे स्थित है। १५ हैं उनका उसीरूपसे श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है।
- प्रणिधान उपयोग और परिणाम इन तीनों शब्दोंका एक ही अर्थ है इसलिये प्रणिधान शब्दका उपयोग और परिणाम दोनों ही अर्थ होते हैं । विशेषका अर्थ भेद करनेवाला है। जो एक पदार्थको दूसरे समस्त पदार्थों से जुदा करनेवाला हो या दूसरे पदार्थों में रहनेवाले गुणोंसे जो असाधारण हो उसका नाम विशेष है किं वा जो मोक्षस्वरूप ही हो अर्थात् जो अन्य पदार्थोंसे एक पदार्थको जुदा
करानेवाला वा अपने ही को दूसरे गुणोंसे जुदा करानेवाला हो उसका नाम विशेष है । आहित, आत्मॐ सात्कृत और परिगृहीत ये तीनों शब्द एक ही अर्थको कहनेवाले हैं इसलिये 'ग्रहण किया हुआ यह % अर्थ आहितका है । विध, युक्त, गत, प्रकार इन चारों शब्दोंका अर्थ एक है। जिसमें दो प्रकार हों उसका