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हैं, यह अज्ञानता का दोष है, इस में आपका कुछ अपराध नहीं है, धनदेव की वचनचातुरी से प्रसन्न होकर कहा कि देखो, एक ही मनुष्य में कितने गुण रहते हैं “बहुरत्ना वसुंधरा" यह लोकोक्ति सर्वथा सत्य है, मेरी इस वृत्ति को मेरे इस जीवन को धिक्कार है, मेरे लिए केवल इतना ही हर्ष का विषय है जो इनके शरीर पर कोई आपत्ति नहीं आई अन्यथा मुझ पापी का उस पाप से उद्धार कैसे होता ? इस प्रकार अपनी निंदा करके भीलों के द्वारा लूटे गए धन सार्थ को लौटा दिया और सब के सामने स्नेह से सुप्रतिष्ठ ने कहा कि यहाँ से दो कोश की दूरी पर सिंहगुफा नाम की मेरी पल्ली है, वहाँ चलकर आप लोग मेरे मेहमान बनें । धनदेव ने स्वीकार किया। सारा सार्थ उसके पीछे-पीछे सिंहगुफा के पास पहुँच गया, पल्ली के पास सार्थ को आवासित करके धनदेव को लेकर सुप्रतिष्ठ अपने घर आया । वहाँ श्रेष्ठ युवतियों के द्वारा सुगंधित तेल से मालिश करवाकर पवित्र जल से धनदेव को स्नान करवाया । पल्ली पति ने खुद कर्पूर चंदन आदि से लेपन कर धनदेव के साथ भोजन किया, भोजन से उठने पर कर्पूर आदि मसाला सहित पान दिया, सुंदर सुखद आसन पर बैठनें पर धनदेव ने कहा कि यह पल्ली तो निर्दय लोगों का आवास है, फिर असाधारण सौजन्य तथा दयावाले आप इसमें कैसे रहते हैं ? ऐसे स्वामी और ऐसे भृत्यों का योग मेरे चित्त में अच्छा नहीं जंचता है, क्यों कि यह स्थान तो सत्य शौच दाक्षिण्य आदि से रहित लोगों का है, भीलों के स्वामी होने पर भी आपमें इतने सुंदरसुंदर गुण विद्यमान हैं, इससे मेरे मन में बड़ा आश्चर्य हो रहा है कि आप यहाँ क्यों रहते हैं ? तब सुप्रतिष्ठ ने कहा, धनदेव ? इस को कहने से क्या लाभ ? बुद्धिमान को अपनी ठगाई और अपने