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तुमने उन लोगों को कैसे वंचित किया ? और छूटकर आए? और मनोहर आकारवाली यह सुंदरी कौन है ? कहाँ प्राप्त हुई ? मुझे सुनाओ--
चित्रगति ने मुझ से कहा कि कनकमाला का रूप धारण करके मदन मंदिर से निकलकर, डोली पर चढकर क्रमशः वर के पास पहुँचा लग्न समय आने पर बड़े हर्ष से नहवाहण ने मेरा हाथ पकड़ा। क्रमशः विवाह-विधि सम्पन्न हुई। नहवाहण के आगे वेश्याओं ने अनेक अंगहार से सुशोभित नृत्य-गीत आदि शुरू किया। इतने में एक युवती ने मेरे पास आकर मुद्रा रत्न सहित अपना हाथ मुझे दिखलाया । देखते ही में सोचने लगा कि हाथी के भय से बचाई गई उस कन्या ने जो लिया था यह वही हैं, मैंने भी अपनी अंगूठी दिखलाई । बाद में मैंने निश्चय कर लिया कि हाथी से बचाई गई मेरी प्रिया ही हैं। मैंने सोचा कि अनुकूल भाग्य क्या नहीं प्राप्त कराता है ? यह सोचकर उससे दी गई मुद्रा से युक्त अपना हाथ उसे दिखलाया तब उसे भी निश्चय हो गया। उसने पास की सखी के कान में कहा कि कनकमाला का सिर दुखता है, अतः पास की अशोकलता में कुछ देर सोती है, तुम लोग देखो । नृत्य समाप्त होने पर हमें बतलाना । चित्रवेग? यह कहकर उसने मुझे उठाया। हम दोनों वहाँ से चलकर गृहोद्यान के अलंकार रूप अशोक वनोद्यान में आसन पर बैठ गए। वह तो भय से कुछ बोल नहीं रही थी किंतु मैंने अपना सारा वृत्तांत उससे कह सुनाया । मैंने कहा, सुंदरि ? तुम्हारे लिए मैंने बड़े कष्ट उठाएँ । सभी विद्याधर नगरों में घूमकर मैंने तुम्हारी तलाश की। अतः लज्जा छोड़कर बतलाओ, तुम्हारा नाम क्या है ? किस कुल को अपने जन्म से