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आपकी आयु शेष है । देवलोक से च्युत होकर हस्तिनापुर में श्री अमरकेतु राजा की देवी कमलावती की कुक्षि में पुत्ररूप से उत्पन्न होंगे । पूर्ववैरी देव माता के साथ आपका अपहरण करेगा । विद्याधर के घर में बढ़ेंगे, देवलोक से आते हुए आपने जिसको दिव्यमणि दी वे ही आपके वास्तविक पिता होंगे । सुप्रतिष्ठ सूरि के पास श्रावक धर्म को प्राप्त कर सम्यक्त्व प्राप्त कर संसार का अंत करेंगे । इस प्रकार केवली के वचन को सुनकर तीन प्रदक्षिणा करके फिर मैंने उनकी वंदना की, वहाँ से उड़कर आपके पास आया हूँ, अब आपका जो आदेश अनुसार करूँ, तब चित्रवेग ने कहा, सुरवर ? आप मेरी बात सुनें, नहवाहन करुण शब्द से रोती हुई मेरी भार्या को हरण कर ले गया । उससे मैं अत्यंत दुःखी हूँ, आप तो अवधिज्ञान से प्रत्यक्ष की तरह जानते होंगे । अतः बतलाइए कि वह कैसे रहती है ? जीती है या नहीं ? कुछ हँसते हुए देव ने कहा कि रोती हुई आपकी भार्या को गंगावर्त ले जाकर नहवाहण ने अपने अंतःपुर में रख दिया, वह सोचने लगी कि मेरे प्रियतम सर्प से ग्रसित होकर अत्यंत पीड़ा से मर गए होंगे, अथवा जीते भी होंगे तो अब उनका दर्शन नहीं होगा अब जीना सर्घथा बेकार है " यह सोचकर उसने उग्र विष खा लिया, खाते ही पृथ्वी पर बेहोश होकर गिर पड़ी। हाहा शब्द होने लगा, नहवाहण विद्याधर भी वहाँ आया, मंत्र-तंत्र का प्रयोग किया, उसके अंग में विषनाशन मणि को भी बाँधा, जब उससे भी लाभ नहीं हुआ, तब विषमंत्र जाननेवाले विद्याधरों को बुलाया, उनके द्वारा भी जब स्वस्थ नहीं की जा सकी तब उसे मृत मानकर अग्निसंस्कार के लिए नहवाहण के बांधव श्मशान ले गए और चिता में फेंककर उन्होंने आग लगा दी । इतना सुनते ही हे धनदेव ?