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सुरसुंदरी ! इस प्रकार जब पिताजी बोल रहे थे, इतने में दमघोष मुनि की वंदना करने के लिए धरणेंद्र वहाँ आए । मकरकेतु को बड़ी देर तक देखकर उन्होंने कहा, कुमार ! आप मुझे पहिचानते हैं ? पूर्वभव में मैं आपका पिता भीमरथ नामक राजा था। आप मेरी भार्या कुसुमावली की कुक्षि से उत्पन्न कनकरथ नामक पुत्र थे, उन्माद हो जाने से भार्यासहित आपके निकल जाने पर बहुत अन्वेषण करने पर भी आपको नहीं पाने पर, आपके छोटे भाई वज्ररथ को अपने पद पर स्थापित करके, वैराग्य से भावित होकर गुरु के पास प्रव्रज्या लेकर मैं सौधर्म में सात पल्योपम आयुवाला देव बना। वहाँ से च्युत होकर भरतक्षेत्र में चंपापुरी में दधिवाहन राजा की भार्या कुसुमश्री के गर्भ में पुत्ररूप से उत्पन्न होकर उचित समय में उत्पन्न हुआ, मेरा नाम प्रभाकर पड़ा । इतने में राज्य के लोभी विमलमंत्री ने मदिरा में आसक्त मेरे पिताजी को मार डाला और राज्य पर अपना अधिकार कर लिया। जब मैं तीन महीने का था, भय से मुझे लेकर मेरी माता विजयपुर में अपने भाई शंख राजा के पास चली गई। जब मैं बड़ा हुआ तो शंख के साथ वहाँ जाकर युद्ध में विमलमंत्री को मारकर मैं चंपानगरी का राजा बना। विमल के पुत्र भी भागकर हस्तिशीस नामक नगर में जाकर जितशत्रु के शरणागत बने, बलवित होकर मैं हाथियों के साथ खेलता था, उससे सभी देशों में मेरी ऐसी प्रसिद्धि हो गई कि समस्त भरतक्षेत्र में प्रभाकर के समान महाबल कोई नहीं है क्यों कि वह बिगड़े हुए मत्त हाथी को एक हाथ से पकड़ लेता है। बहुत दिनों तक राज्य करने के बाद अपने पुत्र को राजा बनाकर, सुगुरु के पास दीक्षा लेकर, मैंने अभिग्रह लिया कि यावज्जीवन में मासोपवास करूँगा । एक समय विहार