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ले ली। अपने पुत्र श्रीदेव के ऊपर कुटुंब का भार सौंपकर राजा के साथ ही भार्यासहित धनदेव ने भी दीक्षा ले ली । चित्रगति आदि विद्याधरों के साथ चित्रवेग विद्याधरेंद्र ने भी सुरि के पास दीक्षा ग्रहण की। प्रियंगु मंजरी आदि अनेक विद्याधरियों के साथ कनकमाला भी दीक्षिता हुईं। नरवाहन राजा ने भी मकरकेतु को अपना राज्य देकर सुप्रतिष्ठ केवली के पास दीक्षा ले ली ।
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इस प्रकार राजा अमरकेतु के साथ दस हज़ार विद्याधर राजाओं ने दीक्षा ली । कमलावती आदि बीस हजार स्त्रियों ने दीक्षा ली । सुप्रतिष्ठ केवली ने तीस हज़ार दीक्षितों को मुनिवेश दिया !
इसके बाद मकरकेतु ने कहा, भगवन ! मैं अभी चारित्र्यग्रहण करने में असमर्थ हूँ, अतः मुझे श्रावक-धर्म का उपदेश दीजिए । केवली ने कहा कि जो निरपराध स्थूल जीवों को दंड नहीं देता है, वह भी मोक्ष प्राप्त करता है । जो मन-वचन-काय से स्थूल असत्य भाषण नहीं करता वह देवमनुष्य भव के सुखों को भोगकर मोक्ष में जाता है । जो स्थूल अदत्तादान नहीं करता । जो स्वदार - संतोष तथा परकलत्र त्याग करता है वह भी अनेक सुखों को भोगकर मोक्ष प्राप्त करता है । इसी प्रकार श्रावक-धर्म को सुनकर सुरसुन्दरी, मकरकेतु आदि ने गुरु के पास सम्यकत्व रत्न मूल श्रावक धर्म को स्वीकार किया ।
इसके बाद चित्रवेग आदि मुनि सूरि के पास ग्रहण, आसेवनरूप शिक्षा का अभ्यास करने लगे । कमलावती आदि आर्याओं ने सुत्रता आदि गणिनी के पास साधुक्रिया तथा अंगों का अभ्यास किया । सब-के-सब छठ, अट्ठम, दशम आदि तप- विनय, वैयावच
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