Book Title: Sursundari Charitra
Author(s): Bhanuchandravijay
Publisher: Yashendu Prakashan

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Page 223
________________ (२१२) आदि में तत्पर हो गए। चौदह पूर्वो का अध्ययन करके चित्रवेग किंचित न्यून पूर्वधर बने । इसके बाद सुप्रतिष्ठ सूरि ने चित्रवेग को सूरिपद पर स्थापित करके अनशन आदि के द्वारा शरीर छोड़कर निर्वाण प्राप्त किया। उसके बाद चित्रवेग सूरि भविकों को प्रतिबोध देने के लिए ग्राम आकर नगर में विहार करने लगे। सुव्रतागणिनी के स्वर्ग जाने पर कमलावती महत्तरा पद पर आई। सूरीश चित्रवेग श्रमणों के साथ देशना देकर जिन-धर्म का प्रचार करने लगे। " विद्याधरेंद्र चारित्र्य स्वीकार" नामक पंद्रहवां परिच्छेद समाप्त ।

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