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(१३७) इसके बाद अनेक आभूषण से युक्त एक पट्टहाथी कों मँगवाया, उस पर राजा चढ़े, रानी उनकी गोद में बैठी, मुक्ताफल से शोभित, धवल आतपत्र राजा ने अपने हाथ से धारण किया । लोग स्तुतिपाठ करने लगे, अनेक प्रकार के बाजे बजने लगे, समस्त नगर में याचकों को दान देने लगी, नर-नारी आनंद से प्रशंसा करने लगे, क्रमशः हाथी जब नगर के बाहर आया, एकाएक पागल हो गया और लोगों को डराता हुआ अत्यंत वेग से ईशान दिशा की ओर चला, 'दौड़ो-दौड़ो, पकड़ो-पकड़ो' यह कहते हुए नौकर वर्ग हाथी के पीछे-पीछे चले, राजा ने रानी से कहा कि हाथी बिगड़ गया है। अतः हम लोग नीचे उतर जाए, नहीं तो जंगल में ले जाकर हमें गिरा देगा, रानी ने कहा, नरनाथ ? मैं कैसे उतरूं ? राजा ने कहा कि देखो आगे एक वटवृक्ष आ रहा है, उसके नीचे से जव हाथी जाएगा तब वटवृक्ष की डाल पकड़ लेना, इस प्रकार राजा कह ही रहे थे, इतने में हाथी उस वटवृक्ष के नीचे पहुँच गया, राजा ने वटवृक्ष की डाल पकड़ ली किंतु रानी उसे पकड़ न सकी, क्यों कि हाथी अत्यंत वेग में दौड़ रहा था, राजा अत्यंत दुखी ही रहे थे, उन्होंने हाथी को आकाशमार्ग से जाते देखा और मन में निश्चय किया कि पूर्व गौरी देव हाथी का स्वरूप लेकर अपना चमत्कार दिखला रहा है, केवली का वचन कभी मिथ्या नहीं हो सकता, इतने में हाथी अदृष्ट हो गया और पीछेपीछे आती हुई सेना राजा के पास पहुंच गई, राजा ने रानी का पता लगाने के लिए समरप्रिय आदि बड़े-बड़े वीरों को सेना के साथ हाथी के रास्ते से भेजा । अत्यंत शोकित राजा सामंत-महंत आदि के कहने से किसी-किसी तरह नगर आए, राज्य से अपने चित्त को हटाकर कमलावती की प्राप्ति की आशा से राजा जीवन