________________
(१७१)
भद्र को मैंने कुछ उत्तर नहीं दिया। उसके बाद समंतभद्र मुझे राजा के पास ले आया। भय और चिंता से वहाँ भी मैंने उनके सामने कुछ नहीं कहा। इस प्रकार हंसिके ! तुम्हारे ऊपर अत्यंत स्नेह होने से मैंने अपना सारा वृत्तांत बतलाया, क्यों कि तुमने बड़े स्नेह से पूछा था !
-" सुरसुंदरीहरण वर्णनं नाम बारहवाँ परिच्छेद समाप्त "