Book Title: Sursundari Charitra
Author(s): Bhanuchandravijay
Publisher: Yashendu Prakashan

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Page 205
________________ (१९४) उस पार में छोड़ दिया । उस देव ने वसुमती को प्रतिबोध दिया, और तीव्र संवेग से वसुमती ने सुधर्मसूरि की प्रवर्तिनी के पास दीक्षा लेकर साध्वी बन गई । इस प्रकार अनंगवती और वसुमती दोनों आर्याएँ चंद्रजसा महत्तरा के पास उग्रतप करने लगीं, एक दिन बाहर जाने पर दोनों आर्याओं ने बहुत बालकों के बीच उन्मत्त सुलोचना कनकप्रभ को देखा । वे दोनों नाचते थे, गाते थे, धूल से उनका शरीर धूसर था, देखते ही अनंगवती ने दुःखपूर्वक कहा, आर्ये वसुमति ? यह तो बहन सुलोचना जैसी दीखती है । जीर्ण वस्त्र पहने हुए एक ग्रहगृहीत मनुष्य के पास बैठी है। ठीक से देखकर वसुमती ने कहा, यह वह कनकरथ है तथा यह निश्चय सुलोचना हैं, दोनों ने जाकर मधुरवचन से बातचीत की। किंतु वे दोनों हँसते थे, गाते थे, तब दया से प्रेरित होकर दोनों बहनें उन दोनों को सुधर्मसूरि के पास ले जाकर अतिशयज्ञानी सूरि से उनके उन्माद का कारण पूछा। गुरु ने उन्हें पहले का सारा वृत्तांत बतला दिया । तब आर्याओं ने कहा, गुरुवर ? यदि इनको स्वस्थ करने के कुछ उपाय हो तो आप उसका प्रयोग करें, गुरुने उनका कहना मानकर कुछ ऐसा प्रतियोग बतलाया जिससे बहुत जल्दी ही वे दोनों स्वस्थ हो गए। बाद में वसुमती ने उन दोनों को बतलाया कि गुरु के प्रभाव से ही आप दोनों स्वस्थ हो गए हैं, सुनते ही उन दोनों ने विनयपूर्वक गुरु के चरणों की वंदना की। गुरु ने कहा कि भोगसुख की लालसा से परदार-सेवन करनेवालों की बड़ी हानि होती है । बध बंधन आदि फल को पाते हैं, कुमार? परदार सेवन से जो पाप किया उसी से आपका राज्यनाश हुआ। तथा पूरलोक में अत्यंत कटु फल भोगना पड़ेगा । गुरु के उपदेश सुनते दी उन्हें चरण-परिणाम उत्पन्न हुआ और दोनों ने गुरु के

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