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प्रतिमा धारण करके जब वे धर्मध्यान में लीन थे, उसी समय पिशाच रूप धारण करके उनके शरीर से माँस नोंचने लगा । भीम अट्टहास करके, उठाकर भूमि पर पटक देता था । चाबुक से उन्हें पीटता था, उनके ऊपर धूली फेंकता था। आग बरसाता था । हाथी बनकर दाँत से उनके शरीर को चीरता था । अधिक क्या कहा जाए, उस पापी ने उन्हें नरक की पीड़ा दी। इतने पर भी साधु अपने धर्मध्यान में निश्चल रहे । वे अपने दुश्चारित की निंदा करने लगे । अनशनपूर्वक काल धर्म पाकर द्वितीय कल्प में चंद्रार्जुन विमान में वित्प्रभ देव बने, अम्बरीष ने प्राणरहित मुनि के शरीर को उठाकर, सुलोचना आर्या के पास फेंक दिया। प्रातः काल में जब सुलोचना कायोत्सर्ग लेकर शुभध्यान में लीन साध्वी समूह के मध्य में थी । अम्बरीष ने, अग्नि से संतप्त लाल वर्ण लोहे पुरुष की विकुर्वणा करके कहा, "पापिन् ? इसका आलिंगन करो। " यह कहकर जलते हुए दंड से उस पुरुष को बाँधकर सुलोचना को मार डाला, शुद्ध भाव से कालधर्म पाकर वह वित्प्रभ देव की स्वयंप्रभा नामक प्रिय देवी बनी । इसलिए हे राजन् ? रागद्वेष के भयंकर परिणाम को देखकर एकांततः रागद्वेष के सम्बन्ध को छोड़ दें, इस प्रकार साधु-साध्वी का वध करके, प्रसन्न चित्त से, वह पापी अम्बरीष देव अपने स्थान को चला गया ?
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'सुलोचना - कनकरथ वध' नाम चौदहवाँ परिच्छेद समाप्त ।
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