Book Title: Sursundari Charitra
Author(s): Bhanuchandravijay
Publisher: Yashendu Prakashan

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Page 203
________________ (१९२) अत्यंत दरिद्र मनुष्य चक्रवर्ती के भोजन को चाहता है, जिस प्रकार एक कुत्तीसिंह के साथ संगम चाहती है, उसी प्रकार मैं कुमार का संगम चाहती हूँ | उसने कहा, पुत्रि ! मेरे मंत्र के सामने यह भी कोई कठिन काम नहीं है, आज ही मैं कुमार के साथ संगम करा दूंगी । उसने कहा, भगवति ! आप इस प्रकार काम करेंगी जिससे लोक में मेरा उपहास न हो जाए। फिर उसे अपनी मुक्तावली देकर बिदा कर दिया । उसने जाकर राजकुमार से सारी बातें कीं ! राजकुमार ने अपने आदमी भेजकर सुलोचना को अपने अंतः पुर में मंगवाकर रख लिया । सुलोचना लोकापवाद मर्यादा आदि का उल्लंघन करके अंतःपुर में अनुरागपूर्वक रहने लगी। नगर के लोगों ने जाकर राजा के सामने फरियाद की। राजा ने कुमार को बहुत समझाया । न मानने पर राजा ने नागरिकों से कहा कि कुमार को दंड दिया नहीं जा सकता, अतः आप लोग कुमार के एक अपराध को क्षमा करें, राजा की बात सुनकर नागरिक लोग दुःखी होकर, अपने-अपने घर चले आए। कनकप्रभ राजकुमार राज्य की देखभाल छोड़कर, राजनीति से हटकर सतत उसके साथ अनेक क्रीड़ाओं आसक्त होकर रहने लगा । इस प्रकार उसके अभिनव यौवन में लीन कनकप्रभ के बहुत समय बीते । एक समय अपमानित होने से क्रोध में आकर रानी राज्यश्री ने एक परिव्राजिका के द्वारा उन्मादकारी चूर्ण मंगवाकर एकांत में सोए हुए उन दोनों के सिर पर छींट दिया । उसके प्रभाव से दोनों के दोनों उन्मत्त होकर गाने लगे, हँसने लगे, असंबद्ध बातें बोलने लगे । राजा भीमरथ ने बहुत मांत्रिक-तांत्रिकों को बुलाया । भूतविकार मानकर वे लोग अपना प्रयोग करने लगे । कुछ लोग मंत्र पढ़कर चपेटा मारने लगें । कोड़ा का प्रहार करने लगे, सरसों छींटने

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