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जहाँ तहाँ हाथीं 'दाँत के होने से वह गजेंद्रमुख के समान शोभता था। कहीं-कहीं कर्पूर अगर चंदन से युक्त वह सुरगिरि जैसा दिखाई देता था। कहीं-कहीं तो जायफल इलायची आदि से युक्त वह कामी के मुख की तरह शोभता था । एक विशाल प्रवहण पर सारे भाण्ड को चढाया, उस समय वह प्रवहण राजभवन जैसा सुशोभित हो रहा था।
शुभतिथि नक्षत्र में समुद्रपूजन करके जिनेंद्र-पूजा करने के बाद श्रमण संघ को दान देकर, मित्रों से विदा लेकर, सकल परिवार से आभाषण करके प्रवहण पर चढ़कर समुद्र के बीच होकर जब जा रहा था, कितने योजन दूर जाने पर कूपकस्तम्भ पर बैठे हुए नियामक ने कहा कि देखो भाई यह आश्चर्य देखो । सुरेंद्र समान सुंदर प्रसन्नमुख कोई महानुभाव अपनी भुजाओं से अनवार पार समुद्र को क्या कर रहा है ? उसकी बात सुनकर, नाव लेकर कुछ, लोगों को उसके पास भेजा । वहाँ पहुँचकर उन्होंने उससे कहा, भद्र ? धनदेव व्यापारी ने हमें आपके पास भेजा है, इस प्रकार कहने पर वे महानुभाव हमारे प्रवहण पर चढ़े, काम से भी अधिक सुंदर पूर्णिमाचंद्र के समान, अत्यंत सौम्य गौरवर्ण, आपसे मिलती-जुलती आकृतिवाले उन महानुभाव को देखने पर मैंने सोचा कि यह तो अमरकेतु राजा जैसे लगते हैं, जंगल में कमलावती की गोद से हर लिया गया यह उन्हींका पुत्र तो नहीं है ? अथवा सोचने की आवश्यकता नहीं इनसे ही पूछू कि ये समुद्र में कैसे गिरे ? और ये कौन हैं ? यह विचार कर मैंने बड़े आदरभाव से मालिश करवाकर अत्यंत विनय से भोजन करवाकर, सुखासन पर बैठने पर, मैंने पूछा, भद्र ? आप कहाँ