________________
(१७३)
पुत्री प्रियंवदा के पास सुखपूर्वक रह रही है, यह कहकर वह विद्याधर वहाँ से चला गया, नरवाहन राजा ने भी स्वामी के मरने से, सेनाओं के भाग जाने पर हाथी घोड़े, रथ आदि सभी वस्तुएँ ले लीं, अतः सुरसुंदरी ! अपने पिता के विषय में चिता नही करें, जिसने आपके पिता को निर्भय बनाया उसको पिशाच क्या कर सकता है ? कोई दूसरा कारण उपस्थित हुआ होगा. इससे आपके प्रिय रत्नद्वीप नहीं आए थे, इसके बाद हंसिका ने जाकर कमलावतीदेवी से सारी बातें कह दीं, और कमलावती ने भी यथावत् बातें राजा से कर दीं ।
सुरसुंदरी इस प्रकार अपनी पितृष्वसा ( फुई) के घर पर अंतःपुर की स्त्रियों को आनंद देते हुए सुखपूर्वक दिन बिताने लगी, इतने में दूसरे दिन राजा जब कुछ आप्तजनों के साथ आभ्यंतर सभा में बैठे थे, सुरसुंदरी सहित कमलावती भी वहीं थी, इतने में द्वारपाल के द्वारा आदेश लेकर, राजा का अत्यंत प्रिय वणिक धनदेव हाथ में रत्नों से भरी थाल लेकर राजा के पास आया, ज्यों ही उसने राजा को उपहार दिया, राजा ने उससे पूछा, धनदेव ? तुम तो सिंहलद्वीप गए थे, फिर इतना जल्द पीछे कैसे आए ? क्या पोत पर कुछ विघ्न तो नहीं आया, जिससे क में ही आ गए, बड़े आश्चर्य की बात है, धनदेव ने कहा, राजन् ? वहाँ से शीघ्र आ जाने का कारण बतलाता हूँ, आप सुनिए
सिंहलद्वीप से आए हुए व्यापारियों से प्रोत्साहित होकर, उस द्वीप के योग्य भाण्ड को लेकर, आपको प्रणाम कर, बड़े सार्थ के साथ विशाल गम्भीर नामक वेला-कूल को मैंने प्राप्त किय । वह कूल सुपारी और नारियल के वृक्षों से अत्यंत रमणीय था