Book Title: Sursundari Charitra
Author(s): Bhanuchandravijay
Publisher: Yashendu Prakashan

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Page 196
________________ (१८५) पुत्र शोक से विव्हल होकर रोने लग गए, इतने में धनदेव ने मूच्छित पड़ी सुरसुंदरी को देखकर संकेत से हँसिका को पूछा कि यह यह कौन है ? उद्यान में गिरने से लेकर सारी बातें हँसिका ने धनदेव से जब बतलाई तब धनदेव ने कहा, राजन् ? आप क्यों दुःखी होते हैं ? देवि ? आप क्यों विलाप करती हैं ? क्या सुमति नैमित्तिक की बात आप लोग भूल गए कि कुसुमाकर उद्यान में जब लड़की गिरेगी, उसके थोड़े दिन के बाद ही पुत्र का दर्शन होगा । आप लोग सुमति के वचन पर विश्वास रखकर चिंता छोड़ दीजिए, क्योंकि सुमति का वचन कभी भी असत्य नहीं हो सकता। इसलिए प्रवहण फूटने पर भी अवश्य आपका पुत्र आएगा ? ____ इस प्रकार धनदेव जब आश्वासन दे रहा था, इतने में एकाएक दुर्दुभिनाद हुआ, नगर के बाहर आकाश से उतरते हुए देव दिखने लगे, देवांगनाओं के गीतों के साथ जय-जय' शब्द सुनाई देने लगा, इतने में प्रसन्न समंतभद्र ने राजा के पास आकर कहा, देव ! नगर के पूर्वोत्तर दिशा भाग में कुसुमाकर उद्यान की प्रासुक भूमि पर श्रमणों से परिवृत्त सर्व शास्त्रार्थ विशारद पर वादी रूप हाथियों को दूर करने में सिंह समान अनेक तपस्याओं में निरत विशुद्ध चारित्र्य संयमयुक्त सुप्रतिष्ठ सूरि समवसृत हुए हैं, धाती कर्मों को दग्ध करके अभी उन्होंने केवल-ज्ञान प्राप्त किया है, केवली महिमा के निमित्त आज देवगण यहाँ आए हैं, उसकी बात सुनकर वंदना के लिए चलते हुए राजा ने कहा, देवि ? आप भी सुरसुंदरी के साथ जाकर उनकी वंदना करके, अपने पुत्र का वृत्तांत पूछिए । सपरिवार राजा उद्यान में जाकर उनकी वंदना करके उचित स्थान में बैठे, सुर-असुर मनुष्यों से भरी सभा में केवली ने गम्भीरवाणी से देशना प्रारंभ की।

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