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जल गई थी। करंकों के बीच में आपने मुझे देखा था, मेरे हाथ पैर कट गए थे, मुझे बड़ी प्यास लगी थी। आपने पानी मंगवाकर मुझे पिलाया था, सम्मान सहित जमाकार दिया था। वही मैं देवशर्मा का जीव हूँ, नमस्कार मंत्र के प्रभाव से वेलंधर नागराज के मध्य सामानिकों से पूजित शिवक नाम का देव हूँ, तब मैंने कहा कि अभी आप कहाँ रहते हैं ? तब देव ने मुझ से कहा कि मेपर्वत के दक्षिणा भाग में आलिसें हजारि योजन प्रमाण लवण समूत्र कासियाहन करके अडतीस योजनामा ऊँचाईवाला, अपने रत्नों की प्रभा से साढ़ेसात योजन तक चारों ओर लवण समेद्र को प्रकाशित करनेवाला 'देउमास"नाम की एक पर्वत है, उसके शिखर पर बासठ योजन ऊचा, सदरारत्नों से अलंकृत मेरा भवना है। दस हजार सामीनिक मेरी सेलकरते हैं। एक पल्योपम आयुवाला बेलंधर,राज हूँ, लवण- समुद्र में बारह हज़ार योजन विस्तारवाली शिव का नाम की मेरी राजधानी है। उसमें अनेक देवियों के साथ दिव्यभोग की अनभव कर रहा हूँ। भद्र ! आपकी कृपा से मुझे यह ऋद्धि प्राप्त हड़ी है, काम 'दंडमास' पर्वत पर आना और अवधिमान से आपकोतरत्नछीप में देखकर यहाँ आपके पासारमाया हूँ बोलिए, मैं आपके लिए ज्या करूँ ? मैं उस समय मन में सोच रहा था कि जित-धर्मनल हल्ला फल है, तो फिर मैं दीक्षा क्यों नहीं ले लेता हूँ? फिर देख कर कि देवदर्शन विफल नहीं होता है, अत: आप तयार हो जाएं रत्नों से पूर्ण दिव्य विमान पर मैं आपको हस्तिनापुर ले चलता है, वहाँ पहुँचने पर आपके सभी मनीरथी पूर्ण होंगे। यह कहकर "दिव्य विमान की विकुर्वणा करके बहुत रत्नों के साथ मुझे उसपर चल कर शिवक देव मुझे हस्तिनापुर के अभएन कि Ef Fr
हस्तिनापुर प्रत्यागमो-HE F EिF FiF प्रा नाम त्रयोदश से समान को Iो bf fh
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