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पड़ी एक तलवार को देखा, देखते ही तलवार उठाकर चपलता से बाँस निकुंज को मैंने काट डाला, उस निकुंज में पहले से गंगावर्त का स्वामी गंधवाहन राजा का पुत्र मकरकेतु बैठा था, निकुंज कटते ही मैंने भूमि पर उसके चमकते हुए सिर को पड़ा देखा, देखते ही मैं चकित होकर सोचने लगा कि मैंने बड़ा अकार्य किया, अवश्य कोई विघ्न होगा। फिर मैंने सोचा कि विद्याएँ सिद्ध हो जाने पर अब विघ्न का कोई संभव नहीं है, फिर भी विघ्न दूर करने के लिए जाप-पूजादि आवश्यक है, यह सोचकर मैं चला, उसी समय मेरी दाईं आँख फड़कने लगी। मैंने सोचा कि यह सुनिमित्त क्या फल देगा? कुछ दूर जाने पर धनदेव ? किंपाक वृक्ष के नीचले भाग में मूच्छित शरीर शोभा से मानो मेरे कुल की लक्ष्मी न हो। ऐसी एक युवती को देखा । लम्बे काले कोमल केश से उसका सिर भ्रमर से आच्छन्न कमल के समान सुंदर था। कान तक पहुँची आँख तथा ऊँची नाक से शोभित उसका मुखचंद्र असंपूर्ण चंद्र को लज्जित कर रहा था। उसकी ग्रीवा शंख के समान ऊँची और कोमल थी। उसके पीन और उन्नत स्तन-युगल ऐरावत के कुंभस्थल के समान थे, उसका मध्यभाग अत्यंत कृश था। उसकी नाभी अत्यंत गंभीर और मनोहर थी मानो विधाता ने कामदेव के मंजन के लिए कूपिकान बनाई हो, पुष्ट और सुकुमार नितम्ब से वह तरुण जन को कामार्त बनाती थी । उसका अरुयुगल रम्भा (कदली) सांभ के समान सुंदर था। चिर-परिचित की तरह उसको देखने पर मेरे नेत्र और हृदय दोनों को अत्यंत आनंद उत्पन्न हुआ। उसके मुख से फेन निकल रहा था। उसके मुख में अंगुली देकर देखा, तो आधा चबाया गया किपाक फल
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