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कुल की लड़की है, ऊँचे आसन पर बैठाकर राजा ने कहा, भद्रे ? भय शोक छोड़कर बताओ कि तुमने किस कुल में जन्म लिया ? किसकी लड़की हो ? यहाँ मेरे उद्यान में कैसे आई ? आकाश से नीचे क्यों गिरी ? भय से कम्पित होकर निःश्वास लेते हुए उसने कहा, तात ? दुःखभरे अपने वृत्तांत को कह नहीं सकती हूँ, फिर भी आपकी आज्ञा अलंघनीय है, अतः कुछ कहती हूँ
जम्बूद्वीप के भरतखण्ड में कुशाग्रपुर नाम का एक नगर है, वहाँ नरवाहन राजा राज्य करते हैं, उनकी देवी रत्नवती की मैं पुत्री हूँ, सुरसुंदरी मेरा नाम है, पूर्व वैरी किसी पिशाच ने पूर्व कर्म दोष से मेरा अपहरण किया, इतना कहकर वह फिर रोने लगी, इतने में राजा के अर्द्धासन पर बैठी रानी कमलावती ने उसे उठाकर अपनी गोद में लेकर कहा, भद्रे ? यह कोई दूसरा द्वीप नहीं है, यह हस्तिनापुर नगर है, ये अमरकेतु राजा हैं, मेरा नाम कमलावती है, तेरा पिता मेरा सहोदर भाई है, वत्से ? मैंने भी तेरा नाम सुना था, अनेक कार्यवश कुशाग्रपुर से जो यहाँ आते थे वे तेरे गुणों का वर्णन करते थे, यह भी तेरे पिता का ही घर है, निःशंक होकर रहो और यहाँ की सहेलियों के साथ क्रीड़ा करो, इस प्रकार मधुर वचनों से आश्वासन देकर वस्त्र के अंचल से उसका मुँह पोंछकर देवी अपने भवन ले गई, वहाँ जाने पर भी उसका मन शांत नहीं रहा, वह शोक से अत्यंत संतप्त थी । लम्बी सांस लेती थी । आँसू बहाती थी। कभी मूच्छित हो जाती थी। कभी विलाप करती थी, कभी हँसती थी, कभी मूक बन जाती थी। उसकी स्थिति को देखकर कमलावती सोचने लगी कि सब अनुकूल साधन रहने पर भी यह चिंता से सूखती क्यों जा रही है ? मातापिता का स्मरण आने से यदि इसे दुःख है तो मुझ से कहती क्यों