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चलने के लिए तैयार हो गई तब मैंने कहा, भद्र ? एक बात मैं पूछना चाहती हूँ, उसने कहा पूछो, तब मैंने पूछा कि तुम्हारे बगल में छिपाकर रक्खे हुए चित्रपट में क्या लिखा है ? देखने का मुझे कौतुक है । यदि योग्य हो तो दिखलाओ। प्रसन्न होकर उसने चित्रपट दिखलाया और उसने कहा कि यह मैंने मेरे हाथ से लिखा है । उस चित्रपट में लिखे गए काम समान सुंदर उस तरुण को देखकर मेरे चित्त में बड़ी प्रसन्नता हुई, मेरा शरीर मानो अमृत से सिक्त हो गया। शरीर में रोमांच हो आया । मेरा अधर फडकने लगा। मैं बेहोश जैसी हो गई. सेरे भाव को जानकर मेरी सखी वासंतिका ने उससे पूछा, प्रियंवदे ? यह आपने किसका चित्र खींचा है ? यह रति विरहित कामदेव जैसा कौन है ? कुछ हँसकर श्रीमती ने कहा कि अभी तक रति विरहित था, अब तो यह रति सहित काम कौन है ? ऐसा क्यों नहीं पूछती? उसकी बात सुनकर सब ताली देकर हँसने लगी और सबने कहा कि श्रीमती ने ठीक सोचा है । इतने में मेरी मूर्छा टूट गई और कुछ क्रोध में आकर मैंने कहा कि इसका दर्शन भी मुझे नहीं हुआ है तो फिर मुझे तुम लोगों ने रति कैसे बना दिया । उसने कहा, सखि? क्रोध मत करो। इस चित्र को देखते ही तुम्हें रति उत्पन्न हो गई इसीलिए तुम्हे मैने रति कहा है, तब मैंने कहा कि प्रियंवदे ? इन को बोलने दो । तुम बतलाओ यह कौन हैं ? प्रियंवदा ने कहा, यह मेरा भाई मकरकेतु है । जो कामदेव समान सुंदर, शूर, त्यागी, कला कुशल है । बहन ? अब मुझे जाने दो, क्यों कि भाई के विरह में मेरा चित्त व्याकुल हो रहा है । तब श्रीमती ने कहा कि यदि आपके भाई इतने सुंदर तथा गुणवान हैं तो हमें भी इनका दर्शन कराना। उसकी बात सुनकर हंसकर प्रियंवदा ने कहा,