________________
( १४६ )
इतने में हाथ में कमंडलु लिए सफेद वस्त्र धारण किए एक वृद्धा तापसी वहाँ आ पहुँची, उस घने जंगल में मुझे रोती देखकर वह मेरे पास आई, मधुर वचन से उसने मुझसे पूछा कि सुंदरि ? तुम क्यों रोती हो ? कहाँ से आई हो ? अकेली क्यों इस भीषण वन में घूमती हो ? प्रणाम करके मैंने हाथी के बिगड़कर भागने से लेकर पुत्र के अपहरण तक की बातें कह दीं, उसने मुझे बहुत आश्वासन दिया और कहा कि कर्मवश में रहनेवाले जीवों को अनेक कष्ट सहन करने पड़ते हैं, अन्य भव में तुमने ऐसे कर्म किए थे जिनके प्रभाव से अभी तुम्हें ऐसे दुखों का अनुभव करना पड़ रहा है, बेकार विलाप करने से क्या लाभ ? यहाँ से नजदीक ही हमारा आश्रम है वही आओ, यह स्थान तुम्हारे रहने योग्य नहीं है क्योंकि यहाँ ठण्डी हवा चलती है और तुम नवप्रसूता हो, यह कहकर तापसी मुझे अपने साथ आश्रम ले गई, अकारण वात्सल्य से वहाँ उन लोगों ने मेरी बड़ी सेवा की। कुछ दिन में जब मैं स्वस्थ हो गई तब मुझे कुलपति के पास ले गई, कुलपति ने मुझे धर्मोपदेश देकर शांत किया, उस तापसी ने मेरे कान में कहा कि ये भगवान विशिष्ट ज्ञानी हैं इनसे अपने मन की बात पूछो, तब मैंने प्रणाम करके उनसे पूछा कि मेरे पुत्र का हरण किसने किया ? क्या मेरा पुत्र जीता है ? या मर गया, मैं कभी उसको देखूंगी या नहीं ? कुलपति ने उपयोग में आकर मुझ से कहा, पुत्रि ? पूर्वभव विरोधी देव तेरे पुत्र को मारने के लिए तेरे पास से हरण करके वैताढ्य पर्वत के वन निकुंज में शिलातल पर छोड़कर चला गया । दैववश एक विद्याधर अपनी भार्या के साथ वहाँ आया और पुत्र मानकर अपने घर ले गया, तेरा पुत्र वहीं बढ़ेगा,