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(१४७) . युवावस्था में आने पर वह हस्तिनापुर में ही मिलेगा, उनकी बात सुनकर मैं अत्यंत प्रसन्न होकर वहाँ रहने लगी। ___प्रियतम ? कुछ दिन के बाद एक दिन हम सब जब धर्मकथा सुन रही थीं इतने में एक वेगवान घोड़े पर चढ़ा, अकेला एक राजपुत्र वहाँ आया । अत्यंत अतिथि वत्सल तापस कुमारों ने उसका सन्मान किया। बाद में विनयपूर्वक वह कुलपति के समीप आकर बैठा, कुलपति ने उससे पूछा कि भद्र ? आप कहाँ से आए ? उसने कहा, भगवन ! मैं अपना समाचार कहता हूँ, सुनिए
सिद्धार्थपुर के राजा सुग्रीव अत्यंत प्रसिद्ध थे, उनकी देवी कनकवती का मैं पुत्र हूँ, मेरे ऊपर अधिक स्नेह होने से ज्येष्ठपुत्र सुग्रीव के रहते हुए भी उन्होंने मुझे युवराज बनाया, क्षयरोग से राजा के मर जाने पर मंत्रियों ने मुझे राजा के पद पर अभिषिक्त किया, दूसरी माता के पुत्र सुप्रतिष्ठ ने किसी विद्याधर से प्राप्त नभोगामिनी आदि विद्याओं के बल से युद्ध करके अपना राज्य ले लिया। उनके डर से मैं माता के साथ अपने मातामह कीर्तिधर्म की चम्पानगरी में आ गया, उन्होंने अपने देश के अंत में एक हजार गाँव दिए, माता सहित मैं अभी बही रह रहा हूँ, एक दिन मेरे पुरुषों ने जंगल में एक वणिक सार्थ को लूटा । बहुत धन' के साथ अनेक घोड़े भी प्राप्त हुए, उन्हीं घोड़ों को फेरने के लिए आज मैं बाहर निकला, क्रमशः घोड़ों को फेर रहा था कि एक घोडे ने मुझे खींचकर यहाँ ले आया। इस प्रकार जब सुरथ कुलपति से अपना वृत्तांत बतला ही रहा था, इतने में उसकी सेना भी वहाँ पहुँच गई, सुरथ ने कुलपति से कहा, भगवन ! अब मैं