________________
(१२६)
I
हूँ, यह भी देने लायक है तो क्यों नहीं देंगे, यह सोचते हुए भोजन कर लेने पर श्रीदत्त ने ताम्बूल दिया और धनदेव वहाँ से निकलकर अपने घर जाकर, श्रीकांता में आसक्ति से चिंतित होकर बिछौने पर सो गया । इधर कामार्त होकर अत्यंत उत्कण्ठिता श्रीकांता गृहोद्यान में कदली गृह में जाकर सो गई । वहाँ उसकी बाँह में एक सर्प ने काट लिया । वेदना से पीडित रोती हुई अपनी माँ के पास आकर उसने कहा, माताजी ? एक बड़े कालेनाग ने मुझे काट लिया है, यह कहकर विष की प्रचण्डता से आँखें बंद कर धड़ाम से भूमि पर गिर पड़ी । उसकी यहाँ स्थिति देखकर उसके माता-पिता, भाई, परिजन सब के सब व्याकुल हो उठे । विष-वैद्यों मांत्रिक-तांत्रिकों को बुलाया । वे लोग मंत्र जाप तथा जड़ी-बूटी आदि का प्रयोग करने लगे । माता विलाप करने लगी । पिता ने आश्वासन दिया, सुंदरि ! नैमित्तिक के वचन को ध्यान में लाकर शोक छोड़ो, दयिते ! अभी जामाता प्रकट होगा । क्यों कि सुमति का वचन कभी झूठा नहीं पड़ता । कमलावती के लिए उसने जैसा कहा था वैसा ही हुआ । जब उपस्थित सभी मांत्रिक विष दूर करने में असमर्थ हो गए तब दुःखी होकर मातापिता, भाई, परिजन यही सोचने लगे कि क्या नैमितक का वचन झूठा होगा ? फिर भी नगर में डिण्डिम शब्द से घोषणा करवाई कि साँप काटने पर श्रीकांता को कोई जिला न सका । इतने में किसी प्रयोजन से वहाँ आए हुए धनदेव ने सकल परिवार को व्याकुल देखकर सामने आए हुए श्रीदत्त से पूछा कि मित्र ? आज आप लोग इतने व्याकुल क्यों हैं ? आप लोगों का मुख इतना मलिन क्यों ? श्रीदत्त ने कहा, मेरी बहन कुमारी श्रीकांता को सांप ने काट लिया है, कोई उसे जीवित नहीं कर रहा है अतः हम लोग चिंतित हैं ?