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(१३०) मैं जग गई हूँ। धनदेव ने कहा, सुंदरि ! स्वप्न के अनुसार सकल वणिग्वर्ग में श्रेष्ठ पुत्र होगा। श्रीकांता ने कहा कि शासनदेवी के प्रभाव से ऐसा ही हो, यह कहकर उसने गाँठ बाँधती । उसी रात श्रीकांता की कुक्षि में गर्भ उत्पन्न हुआ । क्रमशः दो महीने बीते । तीसरे महीने में अभयदान का दोहद उत्पन्न हुआ। उसने धनदेव से कहा, धनदेव ने उसका दोहद पूर्ण किया । क्रमशः समय होने पर शुभ ग्रहों के उच्च स्थान से रहने पर शुभकरण मुहूर्त में श्रीकांता ने पुत्र को जन्म दिया !
-श्रीकांता पुत्र जन्म-नाम नवम् परिच्छेद समाप्त -
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