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क्रोधित होकर देवी ने उसी तलवार से उसे मार डाला। रौद्र ध्यान से मरकर वह दूसरे नरक में गया और मुनि भी निरतिचार श्रामण्य पालन कर विधिपूर्वक काल करके दोनों सौधर्म कल्प में अप्सराओं से सुशोभित विमान में उत्पन्न हुए। पद्म-जीव वहाँ एक सागरोपम आयु भोगाकर ऐरवत द्वीप में विजयनगरी में धनभूति श्रेष्ठी के सुधर्म नामक पुत्र हुए और दीक्षा लेकर दूसरे कल्प में चंद्रार्जुन विमान में शशिप्रभ नामक देव हुए। संपूर्ण दो सागरोपम उनकी आयु हुई । भद्र ! विद्युत्प्रभ ? अभी वे ही देव आपके विमान-स्वामी हैं, जिनके आदेश से आप अभी मेरे पास आए हैं, वह समरकेतु जीव आठपल्योपम अधिक एक सागरोपम आयु भोगकर देवलोक से च्युत होकर इसी भरतक्षेत्र में कुशाग्रपुर नगर में भद्रकीर्ति राजा की प्रिय भार्या सुबंधुदत्ता की कुक्षि में पुत्र रूप से उत्पन्न हुआ और धनवाहन नाम पड़ा। युवावस्था में आने पर उनको राज्य देकर उनके पिता श्रमण बने । धनवाहन ने भी अनेक पूर्वलक्ष राज्य का पालन करके अपने पुत्र नरवाहन को राज्य देकर दीक्षा ले ली। भद्र ! विद्युत्प्रभ ? वही मैं आज विहार कर इस नगर में आया । वह कपिल नरक में एक सागरोपम से भी कुछ अधिक समय तक अनेक दुःखों को भोगकर मगध देश में साभड़ नाम का अहीर बना। बाल तप करके उपरुद्र नामक भवनपति देव बना । मुझे यहाँ देखकर पूर्ववैर को स्मरण कर मेरा वध करने के लिए यहाँ आया, संक्षेप में, मैंने आपके प्रश्न का उत्तर दे दिया। चित्रवेग ! उसके बाद फिर भी मैंने केवली से पूछा कि भगवन् ! मेरी आयु कितनी है ? और मेरा जन्म कहाँ होगा ? मेरे पिता कौन होंगे ? जिन-धर्म का उपदेश कौन देगा? केवली ने कहा कि अभी इक्कीस कोडाकोड़ी वर्ष