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केवली महिमा की, दुन्दुभि शब्द सुनकर बहुत देव-मनुष्य आए। केवली ने मोक्षसुख के लिए उन्हें धर्मोपदेश दिया, अवसर पाकर मैंने पूछा, भगवन् ? आपने उस देव का कौन-सा अपराध किया था? जिससे वह पापी आपको मारने के लिए तैयार हो गया था। तब केवली ने कहा कि अन्य भव में उसके साथ मेरा कैसा व्रत था, सो सुनें--
घातकी खंड विदिह में चंपा नाम की एक नगरी है, जिसमें पद्म नामक राजा और समरकेतु नामक यवराज दोनों सहोदरभाई देश विरति और नीति से राज्यधुरा का पालन करते थे। उन्हें जिन-वचन में श्रद्धा थी और परस्पर अत्यंत स्नेह था । एक समय उनकी सभा में आकर नास्तिकवादी कपिल ने जीव, सर्वज्ञ, और मोक्ष का खंडन किया। युवराज ने अनेक हेतु दृष्टांत और यक्तियों से उसके मत का खंडन कर दिया । जब वह उत्तर न दे सका, तब मंत्री महंत सामंतों ने उसका बड़ा उपहास किया। महाजनों के बीच अपमानित होने से युवराज के ऊपर उसे बड़ा क्रोध आया और एकाएक सभा से निकलकर वह सोचने लगा कि आज तक मैं कहीं भी पराजित नहीं हुआ था। फिर इसने सभा में मझे क्यों पराजित किया ? अब मैं रात में इसके घर जाकर तलवार से जब इसका सिर काटूंगा तभी मेरे मन में शांति आएगी, रौद्र ध्यान में आकर इस प्रकार सोचकर रात में उसके घर जाकर शोचालय के पास छिप गया । युवराज को जब शौच जाने की इच्छा हुई तो दीपक लेकर आगे चलनेवाले लोगों ने शौचालय के पास हाथ में तलवार लिए उसको देखा और पकड़कर बाँध लिया । उसको देखते ही युवराज समझ गया कि वाद में पराजित होने से यह मेरा वध करने के लिए यहाँ आया है।