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नवम्-परिच्छेद
उसके बाद चित्रवेग ने कहा, सुरवर? आप कृपा कर यह भी बतलाइए कि उस समय मुझे मणि देकर आप वेग में कहाँ गए थे ? देव ने कहा, सुंदर ? मेरे द्वारा कही जाती हुई उस बात को भी सुनें-आज शशिप्रभ देव ने मुझे आज्ञा दी कि विद्युत्प्रभ ? आप शीघ्र जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र में कुशाग्रपुर नगर में धनवाहन मुनिवर के पास जाइए, क्यों कि उनके पूर्व वैरी ने ध्यानस्थ उन्हें देख लिया हैं, क्रोध में आकर वह बहुत उपसर्ग करेगा, मैं भी इंद्र की आज्ञा लेकर आ रहा हूँ, बहुत अच्छा, यह कहकर वहाँ से वेग में चलने पर यहाँ मैंने प्रियासहित भागते हुए आपको देखा । अवधि ज्ञान से मैंने जान लिया कि यह वही मेरा मित्र विद्युत्प्रभ है और नहवाहण के भय से भागता जा रहा है और नहवाहण भी इसके पीछे आ रहा है, तब पूर्व मित्र का कुछ उपकार करूँ यह सोचकर मैं आपके पास आया। प्राण रक्षा के लिए दिव्य मणि देकर धनवाहन मुनिवर के पास गया, वहाँ उनका उपसर्ग करनेवाले उस देव से मैंने कहा, रे नीच ! देवोंद्रों के भी वंदनीय, समान शत्रु मित्रवाले मुनिवर को तू पीड़ा देकर अब कैसे बचेगा? मेरी बात सुनकर चकित होकर वह भवन पति देव एकाएक भाग गया । इतने में शुक्ल ध्यान में आने पर मोह नष्ट हो जाने से उन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हो गया, परम विनय से मैंने