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(१२३) आप हँसी छोड़कर सत्य बतलाइए कि नहवाहण के द्वारा हरी गई वही मेरी प्रिया है अथवा मुझे आश्वासन देने के लिए आपकी यह देवमाया है ? क्यों कि जब मेरे विरह में विष खाकर वह मर गई तो फिर वह कैसे हो सकती है ? देव ने कहा, ठीक वही है, यह मेरी देव माया नहीं है, मैंने जिस प्रकार इसको लाया सो आप सुनें-केवली महिमा करके जब मैं आपके पास आ रहा था तब अवधि ज्ञान से मैंने जान लिया कि आपकी भार्या ने मरने का निश्चय कर लिया है, तब आपकी भार्या को लेकर आपके पास आने का मैंने विचार किया, गंगावर्त जाने पर देखा कि विष से इसके अंग शिथिल पड़ गए हैं, मैंने सब की मंत्रशक्ति नष्ट कर विष स्तम्भित कर दिया, मृत जानकर अग्निसंस्कार के लिए श्मशान ले जाकर नहवाहण के परिजन जब इसे चिता पर रखकर आग लगाने लगे, तब विष दूरकर इसको लेकर आपके पास आया और इसके ऊपर आपके अनुराग की परीक्षा करने के लिए मैंने आपसे ऐसा कहा था, और इसे छिपा रक्खा था । आप विश्वास कीजिए यह वही कनकमाला है, देव की बात सुनकर चित्रवेग अत्यंत प्रसन्न हो गया, उसके बाद देव को प्रणाम करके हाथ जोड़कर चित्रवेग ने कहा कि आपने मेरा बड़ा उपकार किया, आपकी कृपा से अब मैं सर्वथा स्वस्थ हूँ, अब मैं आपका क्या करूँ, आदेश दीजिए । देव ने कहा कि देव दर्शन अमोद्य होता है अतः आप कुछ कहे जो मैं आपको दूं, चित्रवेग ने कहा कि यदि आप देना चाहते हैं तो आप ऐसी वस्तु दी जिए जिससे नहवाहण से फिर मुझे पराभव प्राप्त न हो, देव ने कहा कि उस समय स्त्रीसहित आपके ऊपर प्रहार करके उसने विद्याधर की मर्यादा को तोड़