________________
(१०९) कार्य के लिए उतने उत्सुक थे ? देव ने कहा कि मैं कहता हूँ आप एकाग्रतापूर्वक सुनिए--
इसी जंबूद्वीप के ऐरावत क्षेत्र में आर्य देश में अमरावती जैसी एक विजयवती नाम की नगरी है, उसमें जैन धर्माराधक, दयादाक्षिण्य युक्त, मित्रों का अनुवर्तन करनेवाला, चंद्र की तरह सकल कला परिपूर्ण एक धनभूति नाम का सार्थवाह रहता था, उसकी पतिव्रता अत्यंत रूपवती सुंदरी नाम की भार्या थी, श्रावकधर्म का पालन करते हुए साधुओं में भक्तिभाव रखनेवाले, उन दोनों के दिन आनंद से बीतते थे।
इसके बाद एक समय सुंदर स्वप्नों से सूचित शुभ लक्षणों से युक्त पुत्र को जन्म दिया, वह कामदेव समान सुंदर, सूर्य समान तेजस्वी, चंद्रबिंब समान सौम्य तथा जिन-धर्म के समान सुखकारक था, बारहवें दिन माता-पिता ने उसका नाम 'सुधर्म' रक्खा, कालक्रम से उन दोनों को धनवाहन नाम का एक दूसरा पुत्र भी हुआ । जब सुधर्म आठ बरस का हुआ तब एक समय अप्रतिबद्ध विहारी चौदह पूर्व के ज्ञाता श्रमणों से परिवृत्त सुदर्शन नामक आचार्य आए और नगर के पूर्वोत्तर दिशा में नंदनोद्यान में उतरे, सभी नगर-निवासी सूरि की वंदना के लिए चले, तब पुत्र के साथ धनभूति भी भक्ति से चला, तीन प्रदक्षिणा करके धनभूति ने गुरु की वंदना की । गुरु ने भवसागर पार करने में प्रवहणरूप धर्म लाभ दिया, बाद में शेष मुनियों की भी वंदना करके धनभूति नगर निवासी लोगों के साथ भूमि पर बैठा, सूरि ने धर्मोपदेश प्रारंम किया, उन्होंने कहा कि चारित्र कल्पवृक्ष है, सम्यक्त्व उसका मूल है, पंचमहावत ही उसका स्कंध है, समिति