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(११२) को बिगाड़ता है वह का-पुरुष है, वह सुपुरुष नहीं हो सकता। स्त्रियाँ अंदर से विषभरी होती हैं बाह्यवृत्ति से गुंजाफल के समान मनोहर दीखतीं है, सत्य शौच दयारहित, अकार्य में रत स्त्रियों में विद्वान् कभी भी अनुराग नहीं कर सकता । अनुरक्त स्त्रियाँ धनहरण करती हैं, विरक्त होने पर प्राण लेने के लिए भी तत्पर हो जाती हैं । राग-विराग दोनों स्थिति में स्त्रियाँ भयंकर होती हैं, स्त्रियाँ मन में कुछ और सोचती हैं, आचरण कुछ और ही करती हैं, जार के कारण पति को मारती हैं, अपने ऊपर विश्वास कराती हैं, खुद किसी के ऊपर विश्वास नहीं करती हैं, अधिक क्या ? वे तो अपने पुत्र को भी मार डालती हैं, अतः वत्स! राग छोड़कर धर्माचरण में लग जाओ, गुरु की बात सुनकर हँसते हुए धनदेव ने कहा कि अन्य स्त्रियाँ भले ही वैसा आचरण करती हो किंतु मेरी भार्या अनंगवती तो पतिव्रता, सत्यशील, दया आदि से युक्त है, वह अत्यंत अनुरक्त है, विनीत है, स्थिर स्नेहवाली है, गुरुजन के प्रति भक्तिभाव रखनेवाली है, तो फिर अन्य स्त्री की तरह अनंगवती को कैसे माना जाए ? तब गुरु ने कहा, मैं मानता हूँ तुम्हारी स्त्री पतिव्रता होगी, फिर भी उसके साथ किया गया उपभोंग नरक के कारण बनेगा। किंपाक फल की तरह स्त्री भी उपभुक्त होने पर विषम फल को देनेवाली होती है, स्त्री सुरत से बढ़कर दुःखदाई कर्म और क्या होगा? जिस प्रकार विषमिश्रित सरस भोजन भी प्राण हरण करता है उसी प्रकार सुंदरी स्त्री भी उपभोग करनेवाले को दुर्गति में देती है । इसलिए दुर्गति कारण कांतानुराग को छोड़कर पंचमहाव्रतयुक्त होकर चारित्र में तत्पर हो जाओ । इस प्रकार प्रतिबोध पाने पर उसका अनुराग कुछ शिथिल हो गया और एक दिन एकांत में हाथ जोड़कर उसने