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से पवन देते हुए आपको देखा । आपको देखने से मेरे चित्त मैं बड़ी प्रसन्नता हुई और प्रियतम ? मेरे मन में ऐसा विकल्प आया कि केवली का वचन सत्य हुआ, अवश्य ये मेरे पूर्वभव के वल्लभ हैं, क्यों कि इनको देखने से ही चित्त में आनंद हो रहा है, शरीर अमृतसिक्त जैसा लगता है, इतना ही, नहीं ये भी अत्यंत सानुराग की तरह मुझे देख रहे हैं, अतः अवश्य मेरे ही प्राणवल्लभ हैं, इस प्रकार जब सोच ही रही थी इतने में परिजन सहित मेरी धाई वहाँ आ पहुँची और आपके प्रति कृतज्ञता प्रकट करके जब उसने आपसे कहा, कि सूर्यास्त होने जा रहा है अतः आप जाने की आज्ञा दीजिए, तब मैंने मन में सोचा कि बड़े पुण्य से इनका दर्शन हुआ है, इनको मैं छोड़ नहीं सकती । इनके मुखकमल का दर्शन छोड़कर मेरी दृष्टि पंक में फंसी दुबली गाय की तरह जा नहीं सकती। किंतु मेरो धाई तो जा रही है, लज्जा से मैं कुछ बोल नहीं सकती हूँ, अतः इनका कुछ आभरण ले लूं जिसे देख देख कर मन को सांत्वना देती रहूँगी। दूसरी बात यह है कि केवली ने कहा था कि कनकमाला के विवाह समय दर्शन होगा तो यह आभरण ही पहिचानने में चिह्न बनेगा, तब मैंने अपना वलय आपको दे दिया और आपका वलय लेकर बड़े आनंद से मैंने पहन लिया, आपकी ओर अपनी दृष्टि किए परिजन के साथ मैं नगर को चली, तब धारिणी ने मेरे कान में कहा कि केवली का एक वचन तो सत्य हुआ, ये ही आपके वल्लभ देव जीव हैं जो पहले आपके प्रिय थे। मैंने क्रोध में आकर कहा कि मेरे सामने से हटो, तुम ऐसा क्यों कहती हो कि ये पूर्ववल्लभ हैं, अभी मेरे वल्लभ नहीं हैं क्या ? मेरी बात सुनकर कुछ हँसती हुई धारिणी ने कहा कि अवश्य पहले की तरह अभी ये आपके वल्लभ हैं किंतु आप