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आ गया है। मेरे पूर्व कर्मों ने जैसा देखा होगा, वैसा होगा। चिंता करने से इस जीवलोक में कुछ मिलता नहीं, मेरी बात सुनकर भयशोक से अत्यंत संतप्त होकर उसने कहा कि वल्लभ ? दुष्ट विधाता ने मुझ पापिन को आपका विनाश करने के लिए बनाया है, यदि मैं उस समय मर गई होती तो आज आपके ऊपर यह संकट नहीं आता।
___ यदि मैं माता के गर्भ से गिर जाती या बाल्यकाल में ही मर गई होती तो क्या मेरे निमित्त आपके ऊपर यह विपत्ति आती ? हम दोनों का पारस्परिक अनुराग आज विनाश का कारण बन रहा है, स्वामिन ? आपने तो केवल कर्म का अवलम्बन ले लिया है, विपत्ति से बचने के लिए कुछ करना तो चाहिए ? तब मैंने कहा, सुंदरि ? चिंता मत करो, बिना विचारे काम करनेवालों को ऐसा ही फल मिलता है, जो अपना बल तथा शत्रुबल का विचार किए बिना कुछ करता है वह अवश्य अपमान का पात्र बनता है और नष्ट हो जाता है, नीति से चलनेवालों पर कभी विपत्ति नहीं आती, तुम्हारा हरण करके मैंने कौन-सी नीति अपनाई है ? अनराग के पाश में फँसकर हम लोगों ने राज विरुद्ध कार्य किया है, सुंदरि ? अभी अब विषाद करने का समय नहीं है। ऐसी स्थिति में यदि भाग्य अनुकूल होगा तो यह विपत्ति भी सम्पत्ति का रूप धारण करेगी। यह शत्रु बड़ा बलवान है, इसलिए पुरुषार्थ का अवलम्बन ठीक नहीं, पूर्व भव के पुण्य से ही इसका वारण हो सकता है, यदि पुण्य है तो पुरुषार्थ की जरूरत नहीं और यदि पुण्य नहीं है तो भी पुरुषार्थ बेकार है, सुंदरि ? एक तरफ मेरा पुण्य है और दूसरी तरफ यह शत्रु । देखें, किसकी