________________
अष्टम-परिच्छेद
देव के अदृष्ट हो जाने पर मैं भी अपनी प्रियतमा के साथ दक्षिण दिशा की ओर चला । मैं सोचने लगा कि नहवाहण विद्याधर अब क्या करेगा? जब देव मेरी रक्षा करनेवाला है तो फिर उसकी विद्याएँ मेरा अपकार नहीं कर सकती हैं, अथवा बेकार चिंतन से क्या लाभ ? पूर्व कर्म के अनुसार हो सुख दुःख प्राप्त होते हैं, दिव्यमणि के प्रभाव से तथा उस देव के साहाय्य से लगता है कि पूर्व पुण्यानुसार कुछ अच्छा ही होगा। इस प्रकार मन ही मन सोचता हुआ मैं जा रहा था कि इतने में भय से काँपती हुई मेरी प्रियतमा ने कहा, नाथ ? हम लोगों के पीछे कोई आ रहा है। बहुत विद्याधरों के साथ होने से मैं मानती हैं वह नहवाहण ही होगा। इसलिए आप कुछ ऐसा उपाय करें जिससे आपको कोई तकलीफ न हो और न मुझे ही फिर विरहदुःख का अनुभव करना पड़े; तब मैंने भी उधर देखकर कहा, सुंदरि ? इसमें चिंता करने की बात ही नहीं है, तुम्हारे सामने ही तो उस देव ने कहा कि आपके पीछे नहवाहण आ रहा है, घबड़ाने की आवश्यकता नहीं, सुंदरि ? देव और इस दिव्यमणि के प्रभाव से अच्छा ही होगा। दूसरी बात यह हैं कि वह इतना नज़दीक आ गया है कि अब कोई उपाय भी नहीं किया जा सकता, इस की विद्या ऐसी है कि दूर रहने पर भी हम भाग नहीं सकते और अभी तो वह सामने