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हुए हैं ? मेरी आयु अब कितनी है ? च्युत होने पर मेरा जन्म कहाँ होगा, उनका दर्शन फिर मुझे प्राप्त होगा या नहीं? भगवान् शुभंकर केवली ने कहा कि भद्रे ? वह तुम्हारा भर्ता इसी भरतक्षेत्र में वैताढ्य पर्वत की उत्तर श्रेणी में चमरचंच नगर में भानुगतिनामक विद्याधर की प्रिय पत्नी की कुक्षि में उत्पन्न हुआ है । तेरी आयु आठ पल्योंपम की थी, उसमें अब एक लाख वर्ष बाकी है । एकलाख वर्ष पूर्ण होने पर च्यवन प्राप्त करके तू भी उसी श्रेणी में सुरनंदन नगर में अशनिवेग विद्याधर की पुत्री होगी। तेरा नाम पियंगुमंजरी होगा। वहीं पूर्व वल्लभ के दर्शन होगा। देवी ने कहा कि मुझे उसका पता कैसे लगेगा ?
और किस प्रकार उनके साथ मेरा विवाह होगा ? केवली ने कहा कि जिनेंद्र की यात्रा में पागल हाथी से जो तुझे बचाएगा वही तेरा भर्ता होगा । उसके साथ विशेष दर्शन इस प्रकार होगा कि तेरे मामा की कन्या कनकमाला के विवाह में अपने मित्र के कार्य से कनकमाला का रूप धारण करके वह आएगा, वहाँ जो कनकमाला रूप में रहेगा भद्रे ! तू नि.शंक होकर जान लेना कि वही तेरा पूर्वपति रहेगा । बाद में उसके साथ तेरा विवाह होगा और जातिस्मरण से तू मेरी इस बात का स्मरण करेगी। प्रियसखि ? धारिणी ? इस प्रकार केवली के वचन को सुनकर वह देवी हर्षित हुई और केवली के चरणकमल को प्रणाम करके उड़कर महाविदेह मैं शाश्वत जिन बिम्बों को तीथंकरों को प्रणाम करके उसी चंद्रार्जुन देव का चिंतन करती हुई अपने स्थान पर आ गई और आयु पूर्ण होने पर वह भी वहाँ से च्युत हो गई।
सुंदरि ? जो आर्या वसुमती चंद्रप्रभा देवी थी वही मैं, आज मैं प्रियुंगमंजरी रूप में हूँ, देवों का दर्शन करने से जाति स्मरण