________________
(९३)
सम्यक्त्व शुद्धि के लिए प्रयत्न करें, और विदेह क्षेत्र में जाकर त्रैलोक्यबांधव जिनेंद्रों को केवलि भगवंतों को संयमाराधनलीन साधुओं को शाश्वत जिनमंदिर में विराजमान जिन बिम्बों को भक्ति से प्रणाम करके सम्यक्त्वयुक्त होकर मनुष्यभव प्राप्त कर भागवती दीक्षा लेकर श्रामण्य पालन करने जब आप सिद्धगति को प्राप्त हो जाएगी तो फिर ये जन्म मरण, रोग-शोक निर्मल हो जाएगी। इस प्रकार स्वयंप्रभा देवी की बात सुनकर शोक छोड़कर स्वयंप्रभा के साथ इस लोक में आकर नंदीश्वर में जिनेंद्र बिम्बों की वंदना करके भरतक्षेत्र में आने पर राजगृह नगर के बाहर के उद्यान में साधुओं से सेवित सुरासुर मनुज परिवेष्टित धर्म देशना देते हुए शुभंकर केवली को देखकर आकाश से उतरकर स्वयंप्रभा के साथ शुभंकर केवली तथा अन्य श्रमण संघ की वंदना करके उचित स्थान में बैठ गई। उसके बाद केवली भगवान ने गम्भीर वाणी से देशना प्रारम्भ की कि मनुष्यभव । उत्तम कूल में जन्म जिन धर्म ये सब अत्यंत दुर्लभ हैं, इनको प्राप्त कर आप कभी भी प्रमाद न करें, हाथ में रक्खे गए पानी की तरह यह आयु क्षण-क्षण में क्षीण होती जा रही है, जीवन कुशाग्रजल बिंदु के समान अत्यंत चंचल है, कर्मगति अत्यंत विषम है । प्रमाद उसका मूल है, इसलिए चारों गति में यह प्रमाद सर्वथा त्याज्य है । यही प्रमाद जन्म में कारण है, यही प्रमाद रोग-जरा-मरण तथा अनेक दुःखों में कारण है। अतः संसार समुद्र से पार करने में यानपात्र समान जिन धर्म में सर्वथा प्रमाद छोड़कर प्रयत्न करें और सभी पापों को दूर कर मोक्षसुखों को प्राप्त करें।
___ उसके बाद अवसर प्राप्त कर चंद्रप्रभा देवी ने केवली भगवंत से प्रश्न किया कि भगवन ? मेरे प्रिय चंद्रार्जुनदेव कहाँ उत्पन्न