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तुमने अलंकृत किया है ? तुम्हारे पिता का क्या नाम है ? इस नगर में कैसे आई ? मुझे कैसे पहचान लिया ? इस प्रकार मेरे द्वारा कहे जाने पर भय छोड़कर वह कहने लगी, सुनिए प्रियतम ? आपने जो कुछ पूछा है मैं सब आपसे बतलाती हूँ
सुरनंदन नगर आपके लिए अत्यंत प्रसिद्ध है । उसमें प्रभंजन नामक एक विद्याधरराज रहते थे, उनका नीतिशास्त्र में अत्यंत कुशल, अनुरागी, चारों बुद्धियों से संपन्न मेघनाद नाम का एक मंत्री था । अत्यंत पतिव्रता रूपवती उत्तम कुल में उत्पन्न इंदुमती नाम की अत्यंत प्रिया उनकी भार्या थी । उसके साथ विषय-सुख का अनुभव करते हुए उनको अत्यंत सुंदर अशनिवेग नाम का एक पुत्र हुआ । अनेक कलाओं तथा विद्याओं का अभ्यास करने के बाद माता-पिता का आनंद देनेवाला वह यौवन प्राप्त हुआ । इधर दक्षिण श्रेणी में कुंजरावर्त नगर में चंद्रगति नामक विद्याधर रहते थे, मदनरेखा नाम की उनकी अत्यंत प्रिय भार्या थी । कालक्रम से उन दोनों को अमितगति नाम का एक पुत्र हुआ और चंपक गौरवर्णा चंपकमाला नाम की एक कन्या हुई । युवावस्था में आने पर चंपकमाला सुरनंदन के मंत्रिपुत्र अशनिवेग को दे दी गई । उसने उसके साथ विवाह किया, और अपने नगर ले जाकर उसके साथ भोग भोगने लगा । एक समय मेघनाद संसार से विरक्त होकर अशनिवेग को मंत्रिपद देकर राजा प्रभंजन के साथ-साथ सुगुरु के पास दीक्षित हो गया । बाद में अशनिवेग चंपकमाला के साथ गृहवास फल विषय-सुख का अनुभव करने लगा। चंपकमाला के क्रमशः वज्रगति, वायुगति, चंद्र, चंदन, सुसिंह नामक पाँच पुत्र हुए। पाँचों पुत्रों के ऊपर में एक पुत्री हुई ।