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(५८) जाएँ, नहीं तो पाश से जब कण्ठ बेध जाएगा तो आप उससे निकल नहीं पाएंगे, मैं मानती हूँ विधाता को मुझे मारने का दूसरा उपाय नहीं था, इसलिए ही आपका दर्शन कराया । वनदेवताएँ ? आप से मेरी प्रार्थना है कि आपकी कृपा से अन्य भव में मेरे वही भर्ता हों, यह कहकर ज्यों ही वह अपने को अधोमुख करके मरने के लिए तैयार हुई, इतने में एकाएक आकाशवाणी हुई कि भद्रे ? यह साहस मत करो वही चित्रवेग तेरा भर्ता होगा, उसी लग्न दिन में उसके साथ तेरा पाणिग्रहण होगा, सुंदरि ? इस विषय में थोड़ा भी विषाद मत कर, इस प्रकार आकाशवाणी होते ही उसका पाश टूट गया, आकाशवाणी से ही मेरा भय छूट गया ।
और स्वस्थ होकर मैं उसके पास पहुँच गई, वह लज्जित हो गई, मैंने कहा, पुत्रि? माता-पिता को दुःख देनेवाला यह काम तुझे करना चाहिए ? उसने कहा माताजी? मेरे सामने मरना छोड़कर क्या दूसरा कोई उपाय था? मुझे मरना अच्छा लगता है, अति दुःसह विरह किसी भी तरह अच्छा नहीं, मरने से विरह के सारे दुःख समाप्त हो जाते हैं, तब मैंने उससे सारी बातें कह दी, और पूछा कि अब तू क्या करना चाहती हो ? उसने लज्जा छोड़कर मुझ से कहा कि इस जन्म में अन्य पुरुष के हाथसे मेरा हाथ नहीं लग सकता । हँसकर मैंने कहा कि देवता के वचन से यह बात तो सिद्ध ही है किंतु तेरे पिताजी गंधवाहन से कैसे छुटकारा पा सकते हैं ? इतने में फिर आकाशवाणी हुई कि विकल्प मत करो, सुनो, सोमलता जाकर इसके पिताजी से कहे कि बहुत समझाने पर कनकमाला बोलती है कि पिताजी जो कुछ करते हैं वह मुझे सर्वथा मान्य है, उनके लिए जो अच्छा होगा वही मुझे करना चाहिए । इसके बाद वह वरण आदि को हर्ष से स्वीकार