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दूसरे, आप तो बड़े पुण्यशाली हैं क्यों कि आप तो परस्पर बातचीत भी कर सकते हैं, देवता - वचन से कुछ आशा भी है, एक ही नगर में रहते हैं, एक-दूसरे के भाव को जान सकते हैं। मैं तो ऐसा अभागा हूँ कि उसके दर्शन की भी मुझे आशा नहीं है, फिर भी जीता हूँ, भद्र ! मैं तो अपनी प्रिया के निवास स्थान को नहीं जानता हूँ, तब मैंने कहा कि आप अपना वृत्तांत बतलाइए क्योंकि आप अपनी प्रिया के निवास स्थान को भी नहीं जानते ? आप किस नगर में रहते हैं ? यहाँ किस काम से आए हैं ? तब उसने कहा कि आप सावधानी से सुनें
अनेक विद्याधर-नगरों से युक्त इसी पर्वत पर उत्तर श्रेणी में सुंदरत्रिक चतुष्कवाला, अनेक उद्यानों से रमणीय, अत्यंत विशाल प्राकार सुशोभित, इंद्रनगर जैसा सुरनंदन नाम का एक श्रेष्ठ नगर है । उस नगर में हरिश्चंद्र नामक विद्याधरेंद्र राज्य करते थे, सभी विद्याएँ जिनके अधीन थीं, सभी विद्याधर जिनके चरणकमल को प्रणाम करते थे, कमल दल के समान जिनकी आँखें थीं। लोगों के नयन -मन को आनंद देनेवाले जो अत्यंत शूर थे, सूर्य के समान जो तेजस्वियों के तेज का नाश करनेवाले थे, जिनका प्रताप अखंडित था । मदोन्मत्त शत्रुरूप हाथी के लिए जो सिंहशावक जैसे थे, जो सभी विद्याधरों के लिए प्रसिद्ध तथा अत्यंत यशस्वी थे, कमल समान मुखवाली नीलोत्पल पत्र के समान विशाल आँखोंवाली, अत्यंत कांतिमती रत्नवती उनकी भार्या थी, उसके साथ त्रिवर्गसार विषयसुख का अनुभव करते हुए उनको उस भार्या में देवकुमार जैसा एक पुत्र उत्पन्न हुआ। जिसका नाम प्रभंजन रक्खा गया । उसके बाद असाधारण रूप लावण्यवाली बंधुसुंदरी नाम की एक कन्या उत्पन्न हुई । क्रमशः दोनों प्रथम