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कि उसने मेरे हाथ से मुद्रारत्न क्यों ले लिया ? और अपने हाथ का मुद्रारत्न मुझे क्यों दे दिया ? मैं उसके कुल का कैसे पता लगाऊँ ? और उसके साथ कैसे मेरा विवाह होगा ? अगर वह मेरी पत्नी बने तो मेरा जीवन सफल हो जाए । उसके बिना तो जीना भी बेकार है ? वह पुरुष धन्य है जिसके साथ उसका विवाह होगा । क्यों कि रंभागर्भ के समान कोमल उसकी भुजलता है । और हंस के समान चालवाली है, मैं इसलिए धन्य हूँ कि हाथी से बचाते समय उसको अपनी गोद में लिया । किंतु अच्छी तरह से उसका आलिंगन नहीं कर सका, इसलिए वंचित भी हूँ, फिर यदि कभी ऐसा समय आएगा तो मैं ठीक से आलिंगन किए बिना नहीं रहूँगा । इस प्रकार चिंतन करते-करते रात बीत गई। प्रभात होने पर जिन की वंदना करके उसके घर का पता लगाने के लिए नगर की ओर चला । नगर में जाने पर देखा तो नगर एकदम शून्य था । नगर की शोभा से रहित ठीक जंगल जैसा वह नगर देखने में आ रहा था, मैं अत्यंत चिंतित हो गया ? | क्यों यह नगर एकाएक उजड़ गया । अथवा क्या वह इन्द्रजाल है ? अथवा किसी देव ने इस स्थान से नगर का अपहरण किया है ? अथवा किसी के भय से नगर के लोग यहाँ से चले गए हैं ? इस प्रकार जब चित्रगति सोच रहा था, इतने में सामने एक मनुष्य को आते देख मधुर वचन से संबोधित करते हुए उसने पूछा, भद्र ? यह नगर क्यों लोगों से शून्य दिखता है ? तब उसने कहा कि मैं कहता हूँ - सुनिए
आप तो जानते हैं कि प्रज्ञप्ति विद्या से गर्वित शूरवीर विद्याधरराज कनकप्रभ इस नगर का पालन करते हैं, पिता के द्वारा