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बड़े भाई ज्वलनप्रभ को दिए गए राज्य को छीनकर स्वयं राजा बन गए हैं।
अपने भाई को नगर से निकाल दिया । वह अपने श्वशुर के नगर में जाकर रह गया । कनकप्रभ यहाँ राज्य करता है। श्वशुर भानुगति ने ज्वलनप्रभ को रोहिणी विद्या दी। जब वह विद्या-साधन करने के लिए गया । किंतु उनके चित्त को चंचल नहीं कर पाया । तब डरकर आते समय उसने भूल से जिनमंदिर का उल्लंघन किया । धरणेंद्र ने पहले नियम बनाया था कि जो जिन-मंदिर का लंघन करेगा उसका विद्याच्छेद हो जाएगा। यह बात वैताढ्य पर्वत पर सब को मालूम है। अतः जिन-मंदिर का लंघन करने पर धरणेंद्र ने कनकप्रभ का विद्याच्छेद कर दिया । ज्वलनप्रभ की विद्या सिद्ध हो गई यह जानकर, डरकर इस नगर को छोड़कर दक्षिण श्रेणी में गंगावर्त नगर में अपने श्वशुर श्री गंधवाहन राजा के शरण में गया । इस वात को जानकर नगर के लोग भयभीत होकर यह सोचकर कि अब हमारी रक्षा कौन करेगा ? नगर छोड़कर जहाँ-तहाँ चले गए । और यह नगर एकाएक शून्य हो गया । तब चित्रगति ने पूछा कि वे लोग कहाँ चले गए ? उसने कहा, कुछ लोग गगनवल्लभ नगर चले गए । कुछ लोग विजयपुर, कुछ लोग वैजयंतपुर, कुछ लोग शत्रुजय, कुछ लोग अरिंजय, कुछ लोग नंदननगर, कुछ लोग विमलनगर, कुछ लोग रथनेपुर, कुछ लोग आनंदपुर, कुछ लोग अरिजयपुर को चले गए, कुछ लोग शकटामुख, कुछ लोग वैजयंती को चले गए, कुछ लोग रत्नपुर, कुछ लोग श्रीनगर, कुछ लोग रत्नसंचय, कुछ लोग जलावर्त, कुछ लोग शंखनामपुर को