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सूचित करता है। किंतु मुझे आश्चर्य लगता है कि राजपुत्र से वरण हो जाने पर फिर मेरी भार्या कैसे होगी ? यह सोचकर पान देते हुए मैंने उससे कहा कि जो कुछ होगा आप देखेंगी। बहुत अच्छा ।" कहकर वह अपने घर चली गई, इसके बाद भानुवेग ने कहा कि उस स्वप्न का कुछ स्वरूप मेरे मन में आया है आप सुनें, यह कनकमाला ही माला थी। उसमें राग ही माला का ग्रहण करना था। वरण उसकी अप्राप्ति थी। इतना तो स्पष्ट है, कुछ अस्पष्ट स्वरूप यह है कि- कोई (मित्र) उपाय से आपको कनकमाला अर्पित करेगा, वह फिर आपके हाथ से चली जाएगी और आप विपत्ति को प्राप्त करेंगे । अंत में फिर कोई उसे लाकर आपको अर्पित करेगा । उसकी बात सुनकर मैंने कहा कि आपके द्वारा बतलाया गया स्वप्न का स्वरूप बिलकुल सत्य है किंतु उसकी प्राप्ति अत्यंत असंभव है । तब उसने कहा कि अनुकूल रहने पर लोक में असंभवित वस्तु भी संभवित बन जाती है । हे सुप्रतिष्ठ ! उसकी प्राप्ति की आशा से उसकी कथा करते-करते बहुत दिन बीत गए । लग्न का दिन भी नज़दीक आ गया। तब अनेक विद्याधरों के साथ अपने बंधुओं सहित विद्याधर राजपुत्र नभोवाहन विवाह के लिए पहुँच गया, वह पंचमी तिथि भी आ गई । अपराण्ह समय में मेरे मन में विकल्प उठा कि क्या देवता-वचन मिथ्या होगा ? अथवा उसके अनुरूप कुछ नहीं देखने से लगता है कि सोमलता की बातें बिलकुल झूठ निकलीं, इस प्रकार चिंतन करने के बाद वहाँ शांति नहीं मिलने से मैं नगर से निकलकर उसी उद्यान में गया जहाँ मैंने उसे देखा था, जिस वृक्ष में दोला लगी थी वहाँ जाकर बैठ गया और मैं सोचने लगा कि अब मुझे क्या करना चाहिए। मेरे देखते मेरी प्रिया दूसरे के हाथ