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फूलों की एक मनोहर माला को देखकर उसको लेने की इच्छा से मैं चला, जब मैं किसी प्रकार से भी मैं उस माला को ले न सका तब किसी मित्र ने मुझे प्राप्त कराई, मैंने ज्यों ही उसे गले में लगाना चाहा, वह मेरे हाथ से गिर गई, कहाँ चली गई यह मैं नहीं जानता हूँ, उसके विरह में मुझे बड़ा दुःख हुआ । “सूख गई थी फिर भी मैंने इसे विकसित फूलोंवाली बनाया है" " यह कहकरकिसी ने मेरे गले में पहना दी," इतने में अनेक बाजाओं के शब्द से मिश्रित तूर की आवाज सुनकर मेरी निद्रा टूट गई, हर्ष विषाद कारी उस स्वप्न को देखकर मैंने मन में सोचा कि इस स्वप्न का तात्पर्य क्या है ? वह माला क्या थी? कोई विद्या भी याकोई सम्पत्ति थी? किसी ने दी, नष्ट हो गई, फिर मुझे प्राप्त हो गई, स्वप्न के स्वरूप को जब मैं नहीं समझ पाया तो उठ गया। प्रातःकृत्य कर के भानुवेग के साथ प्रासाद के ऊपर चित्रशाला में मणिमयी भूमि पर बैठा प्रातःकाल में देखे गए स्वप्न का स्वरूप उससे पूछा । वह भी जब स्वप्न के स्वरूप को समझ नहीं पाया, हम दोनों स्वप्न फल के विषय में संकल्प-विकल्य कर ही रहे थे इतने में बहमल्य आभरणों को धारण किए हुए सुंदर वेष में कहीं जाने के लिए तैयार नगर के लोगों को देखा, मैंने भानुवेग से पूछा कि ये लोग कहाँ जा रहे हैं ? उसने कहा, आज मदनत्रयोदशी है, अतः मदनोद्यान में मदन की पूजा के लिए ये लोग वहीं जा रहे हैं, हम भी चलकर मदन यात्रा देखें, मैंने भी स्वीकार किया। सुंदरवेष धारण कर के हम दोनों भी मदनोद्यान पहुँचे, क्रीड़ा करती हुई कामिनियों के नूपुर शब्द से मानो वहाँ के वृक्ष सुंदर गीत गा रहे थे, कोयलों के पंचमनाद नवपल्ल विभूषित वृक्ष लोगों को अपनी ओर बुला रहे थे, मधुमास को प्राप्त कर वहाँ के वृक्ष मानो मत बने हुए थे, धने वृक्षों से