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विवाहलग्न निकालने का आदेश दे दिया, ज्योतिषी ने वैशाख शुल्क पंचमी की रात्रि में विवाह का सुंदर लग्न बतलाया । तब मैंने राजा से कहा कि मुझे जाने की आज्ञा दीजिए जिससे कि अपने नगर जाकर मैं विवाह की तैयारी करूँ, प्रिये? उनसे आज्ञा लेकर उनके मंत्री चंद्रयश आदित्य यश के साथ मैं यहाँ आया हूँ, वे लोग भी कनकमाला वरण के लिए मेरे साथ ही आ गए हैं, कल प्रात:काल कनकमाला का वरण होगा।
ऐसी स्थिति में कनकमाला एक ही अत्यंत प्रिय पुत्री है, इसका अनुराग चित्रवेग में हो गया है, इसका मनोनुकूल विवाह यदि मैं नहीं कर पाता हूँ, तो मेरा जीवन बेकार हो जाता है । उधर राजा ने भी बड़े उपचार से कनकमाला की याचना की है
और मैंने भी उनका वचन मान लिया है, अब मैं अपनी बात बदल नहीं सकता हूँ, प्रिये ? यही मेरे संकट का कारण है, उनका बात सुनकर चित्रवेग ? मेरी स्वामिनी चित्रमाला का भी मख मलिन हो गया, फिर उसने कहा कि मुझे तो ऐसा लगता है कि चित्रवेग के विरह में कनकमाला अवश्य मरेगी, क्यों कि उसके साथ विवाह का आश्वासन देने से ही तो वह अभी तक जी रही है, अमितगति ने कहा कि ऐसी स्थिति में मैं क्या करूँ ? लड़की नहीं देने से राजा अत्यंत रुष्ट हो जाएँगे जिससे मेरी बड़ी हानि होगी। इस वैताढ्य पर्वत पर मेरा रहना भी भारी हो जाएगा, दूसरा अनिष्ट भी हो सकता है, इतना ही नहीं वह बलपूर्वक भी लड़की ले सकता है इससे तो प्रेम से स्वयं लड़की दे देना अच्छा होगा। अगर चित्रवेग के साथ इसका विवाह कराता हूँ तो चित्रवेग भी मारा जायगा और हम भी मारे जाएंगे। इसलिए सुंदरि !