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भानुवेग ने कहा कि इसी नगर में अत्यंत यशस्वी अमितगति नामक एक विद्याधर है, उनकी भार्या चित्रमाला है । यह उनकी अत्यंत गुणवती एक ही लड़की है, इसका नाम कनकला है । तब मैंने कहा, मदन की पूजा करनेवाली यह कौन है ? सखियों के बीच कथा कहती हुई यह कौन है ? इस तरह जब मैंने पूछा तब उसने कहा कि आप मुझे क्यों ठगाते हैं ? बिल्ली को काँजी से कौंन ठग सकता है ? इन प्रश्नों को पूछकर आप मेरी बुद्धि को मार नहीं सकते हैं। क्या चटाइयों से सूर्य को ढाँका जा सकता है ? भानुवेग के ऐसा कहने पर मैंने लज्जा से अपना मुख नीचा कर लिया, यह देखकर भानुवेग कुछ अलक्ष्य जैसा हो गया । उस समय में लज्जा से अपनी दृष्टि दूसरी ओर करता था फिर भी उसीके मुखकमल पर मेरी दृष्टि पड़ जाती थी । अनुराग तंतु से बेधी दृष्टि लोगों से भरे मार्ग में भी धीरे-धीरे प्रियजन पर पड़ ही जाती है, इसके बाद चंचल नयन बाण से जर्जर मेरे हृदय में काम के पाँचों बाण प्रविष्ट हो गए । इतने में उसका सखी-समूह अपने-अपने घर को चला, मुझे देखती हुई वह बाला भी उनके साथ चली, अपनी गर्दन पीछे करके स्निध दृष्टि के धागे से उसने मेरे हृदय को खींच लिया । जब वह मेरी दृष्टि से बाहर हो गई मेरे चित्त में असहय संताप होने लगा, भानुवेग की इच्छा से हम दोनों घर आ गए । मैं ऊपर महल में जाकर अपनी शय्या पर सो गया, भानुवेग मेरे पास बैठा था । उसने मुझ से कहा कि आप दुःखी क्यों हैं ? विषादभरी लम्बी साँस क्यों छोड़ते हैं ? आप का शरीर क्यों टूटता है । भाड़ के चने की तरह आप क्यों छटपटा रहे हैं ? कुछ-कुछ सोचकर आप बेकार क्यों हंस पड़ते हैं ? नाना रसमय नाटयकाव्य का अभिनय जैसा क्यों करते हैं ? आप अपने