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शत्रुओं को जीतकर छ: खण्ड भूमि के स्वामी भरत चक्रवर्ती का भी जब मरण हो गया तो सामान्य मानवों की बात ही क्या है ? अपने पराक्रम से शत्रुओं की सेना को जीतकर पैदल सेना आदि से अपनी रक्षा करनेवाले शूरवीर सोम यश और आदित्य यश आदि बड़े-बड़े अभिमानी राजा भी जब पापी कठोर यमराज से मारे गए तो फिर सामान्य लोगों की बात ही क्या ? जिन देवों की उत्कृष्ट आयु तैंतीस सागरोपम बताई गई है वे भी जब च्यवन को प्राप्त होते हैं तो फिर सामान्य प्राणियों की गिनती क्या ? भवनपति व्यन्तर ज्योतिष्क तथा वैमानिक देव भी जब च्यवन को प्राप्त होते हैं तो फिर मनुष्य लोक में रहनेवालों की क्या गणन। ? इन तीन लोक में सुखसमृद्ध सिद्धभवन्तों को छोड़कर एक भी प्राणी ऐसा नहीं जो मृत्यु के वश में न पड़ा हो, देव ? इस तरह सकल त्रिभुवन को काल कवलित जानते हुए भी रानी की मृत्यु से आप बेकार क्यों शोक करते हैं, केवल रानी की ही मृत्यु होती तो शोक करना योग्य था किंतु मृत्यु तो साधारण है तो फिर शोक करना, रोना व्यर्थ है, राजन ? यह जीवन अत्यंत पतले कुशाग्र भाग पर लटकते हुए जलबिंदु के समान चंचल है, जीव निद्रा लेकर उठ जाता है यही आश्चर्य की बात है, राजन ! इस प्रकार जगत की स्थिति को देखकर रानी-मरण का शोक करना आपके लिए योग्य नहीं है । इस प्रकार सुमति के द्वारा समझाए जाने पर राजा ने रानी का अग्नि संस्कार किया। उसके बाद कुछ दिन तक राजा ने लोक संभावन आदि अपना आवश्यक कार्य भी छोड़ दिया और रानी के शोक में ग्रह से ग्रसित की तरह रहने लगे । सुमति आदि मन्त्रियों ने शोक छुड़ानेवाली बातों से राजा को समझाया, जिससे धीरे-धीरे राजा शीक से मुक्त हुआ । मुझे