________________
(३०)
में राजा से कहा कि देव ? मेरे पुत्र सुरथ को युवराज पद पर क्यों नहीं अभिषिक्त करते हैं ? राजा ने कहा कि सुप्रतिष्ठ ज्येष्ठ पुत्र के रहते हुए सुरथ को युवराज पद पर स्थापित करना उचित नहीं हैं । रानी ने कहा कि मैं आपकी प्रिया हूँ, अतः आप मेरे पुत्र सुरथ को युवराज बनावें, राजा ने कहा कि यह बात ठीक है लेकिन सभी सामंत-महंत सुप्रतिष्ठ को अधिक चाहते हैं । दूसरी बात यह है कि वह बड़ा शक्तिशाली है, अपमानित होने पर मेरे राज्य को भी ले सकता है, इस पर रानी ने हँसकर कहा कि इस पराक्रम पर विधाता ने आपको राजा कैसे बना दिया ? आपको तो भील बनना चाहिए। जिससे सुप्रतिष्ठ कुमार इतना शक्तिशाली है, इसीलिए तो उसे पकड़कर जेल में डाल दीजिए । और मेरे पुत्र सुरथ को युवराज बनाकर निःशंक होकर रहें, रानी के वचन सुनकर उत्तर दिए बिना ही राजा उठकर सभा-मंडप में जाकर बैठ गए। देवी की बात सुनकर सुभगिका नामक दासी ने आकर मुझे ज्यों की त्यों कह दी। धनदेव? तब मेरे चित्त में ऐसा विचार आया कि क्या कनकवती के कहने से पिताजी ऐसा करेंगे ? स्त्रियों के वश में पड़ा मनुष्य न तो पूर्व स्नेह को गिनता है न नीति का ही विचार करता है और न लोकापवाद से डरता है और न भविष्य में आनेवाली विपत्तियों से डरता ही है । इसलिए पिताजी जब तक रानी के वचन से कुछ करते नहीं उसके पहले ही पिता को मारकर मैं राज्य को अपने अधिकार में कर लूं । अथवा मुझ विवेकी के लिए ऐसा करना ठीक नहीं है, अतः पिताजी को बाँधकर कारागृह में डाल दूं, अथवा सुरथ के साथ कनकवती को यमराज के मुख में पहुँचा दूं? अथवा दोनों को जेल में दे दूं? अथवा पहले देखू कि पिताजी क्या करते हैं ? क्यों कि