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श्री रत्नप्रभाकर ज्ञान पुष्पमाला पुष्प नं. ३२
श्री सिद्धसूरीश्वर सद्गुरुम्यो नमः
अथ श्री शीघ्रबोध नाग ६ घा.
-**थोकडा नम्बर ६४ वां
श्री नन्दीजी सूत्रसे पांच ज्ञानाधिकार। झान-मान दो प्रकारके होते है (१) सम्यक्क्षान. (२) मि. प्वाहान. जिस्म जीवादि पदार्थों को यथार्थ सम्यक् प्रकारसे जानना उसे सम्यक ज्ञान कहते है और जीवादि पदार्थों को विप्रीत जानना उसे मिथ्याज्ञान कहते है ॥ ज्ञानवर्णियकर्म और मोहनियकर्म के क्षोपशम हानेसे सम्यक्ज्ञान कि प्राप्ती होतो है तथा मानवर्णिय कर्म का क्षोपशम और मोहनिय कर्म का उदय होने से मिथ्याज्ञान कि प्राप्ती होती है जैसे किसी दो कवियोंने कविता करी जिस्मे एक कविने ईश्वरभक्ति का काव्य रचा. दुसराने मबार रस में महिला मनोहर माला' रची. इस्मे पहले कविक मनावणिय और मोहनीय दोनों कर्मों का क्षोपशम है और दुसरे पिके मानावर्णिय कर्म का तो क्षोपशम है परन्तु साथमे मोहविसकर्म का उदय भी है वास्ते पहले कवि का सम्यक् ज्ञान है और दुसरे का मिथ्याज्ञान है। इन दोनों प्रकार के ज्ञान के अन्दर