Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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शुद्धि-पत्र
पृष्ठ पं. १०६ ३
११३
११ २५
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अशुद्ध
शुद्ध जसकित्ति-णिमिण जसकित्ति-अजसकित्ति-णिमिण यशकीर्ति, निर्माण
यशकीर्ति, अयशकीर्ति, निर्माण अत्थगदीए
अत्थ गदीए अर्थगतिसे
इस गतिमें उप्पण्णाणं सणकुमारादि' उप्पण्णाणं, ओरालियसरीरअंगोवंगस्स
सणक्कुमारादि जीवोंके, और सनत्कुमारादि । जीवोंके उपर्युक्त प्रकृतियोंका, तथा औदा
रिकशरीरांगोपांगका सनत्कुमारादि भी इनका निरन्तर
भी निरन्तर मणुस्साउ-मणुसगइपाओग्गाणु- मणुस्साउ- [ मणुसगइ-] मणुसगइ. पुवीओ
पाओग्गाणुपुवीओ तिरिक्खाउ-तिरिक्खगइपाओ- तिरिक्खाउ॰ [तिरिक्खगइ-] तिरिक्खग्गाणुपुत्वीओ
गइपाओग्गाणुपुव्वीओ मनुष्यायु एवं
मनुष्यायु, [ मनुष्यगति ] एवं तिर्यगायु, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानु- तिर्यगायु, [ तिर्यग्गति ], तिर्यग्गतिपूर्वी
प्रायोग्यानुपूर्वी पज्जत्त-पत्तेय
पज्जत्त-अपज्जत्त पत्तेय पर्याप्त, प्रत्येक
पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक धुवबंधित्तादो । xxx धुवबंधित्तादो । अवसेसाणं सादि
अद्धवो, अद्धवबंधित्तादो। ध्रुवबन्धी हैं । xxx ध्रुवबन्धी हैं। शेष प्रकृतियोंका सादि
और अध्रुव बन्ध होता है, क्योंकि, वे
अध्रुवबन्धी हैं। णवदसणा-सोलसकसाय- णवदसणावरणीय-सादासाद-मिच्छत्त
सोलसकसाय[तिर्यग्गइ-तिर्यग्गइपाओगाणु- [तिरिक्खगइ-तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुवी-]
पुब्बी -] णिमिण-पंचंतराहयाणं णिमिण-उच्चागोद-पंचंतराइयाणं निर्माण और
निर्माण, उच्चगोत्र और सादासाद
सादासाद पविक्ख
पडिवक्ख
१३४ ११ १३६ ९
-१४९
, १६० २७३
२० १० १२
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