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खण्ड १ | जीवन ज्योति
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आगमन हुआ । व्याख्यान के उत्तरदायित्व से आप मुक्त हुईं। इस समय का सदुपयोग करके आपने हिन्दी साहित्य सम्मेलन की साहित्यरत्न परीक्षा फर्स्ट डिवीजन में उत्तीर्ण कर ली ।
प्रखर व्याख्याता पू० कान्तिसागरजी की सद्प्रेरणा से जयपुर संघ ने जैन श्वेताम्बर दादाबाड़ी (मोती डूंगरी रोड ) में पू० प्रवर उपाध्याय श्री सुखसागर जी म० सा० के सान्निध्य में द्वितीय उपधान तप करवाकर अतुल लाभ लिया । श्रावक-श्राविकाओं ने उत्साहपूर्वक तपाराधना की और मालारोपण का कार्यक्रम भी बड़े अच्छे से ढंग सम्पन्न हुआ ।
इसी उत्सव के दौरान पूज्याश्री उपयोगश्रीजी म. सा. की संसारपक्षीय भतीजी किरण वैराग्य भावना से प्रेरित हो आपके पास आई । वह फलौदी निवासी श्रावक श्र ेष्ठ श्रीमान् ताराचन्दजी की सुपुत्री थी और उसकी आयु कुल ११ वर्ष की थी ।
वि सं० २०१३ में पूज्य आचार्य श्रीमज्जिनआनन्दसागर सूरीश्वर जी म. सा., पू. उपाध्याय श्री कवीन्द्रसागर सूरीश्वरजी म. सा., उपाध्याय सुखसागरजी म. सा., गणिवर्य हेमेन्द्रसागरजी म. सा., उदयसागरजी म. सा. की निश्रा में युगप्रधान दादा जिनदत्त सूरीश्वरजी म. सा. की पुण्यभूमि अजमेर में अखिल भारतीय खरतरगच्छ की सम्मति से उनकी अष्टम शताब्दी समारोह आयोजित करने का निर्णय ले लिया गया था । इसी अवसर पर साधु-साध्वी श्रावक-श्राविका सम्मेलन का कार्यक्रम रखा गया गया और सभी पू. मुनिवरों तथा साध्वियों को आमन्त्रित किया गया ।
समीपस्थ क्षेत्रों में विचरण करने वाले सभी साध्वी जी म. सा. सम्मलित हुए । यथा - पू. श्री उमंग श्रीजी म. सा., पू. श्री कल्याणश्रीजी म. सा., जैन कोकिला श्री विचक्षणश्रीजी म. सा. अपनी शिष्या मंडली सहित व पू. श्री अनुभव श्रीजी म. सा. तथा पू. प्रवर्तिनी श्री ज्ञानश्रीजी की प्रतितिधि के रूप पू. चरितनायिका जी भी पधारीं । इस प्रकार कुल ५५ साध्वीजी म. सा. सम्मेलन में सम्मिलित हुए थे ।
सम्मेलन की शोभा तो अभूतपूर्व थी ही, विशेषता यह थी कि सभी गच्छ वालों ने बिना भेदभाव से सम्मिलित होकर सम्मेलन को सफल बनाया। बड़े ही शानदार ढंग से विराट आयोजन के साथ सम्मेलन सम्पूर्ण हुआ । शताब्दी स्मारिका में इसका सचित्र वर्णन है । इसी अवसर पर जिनदत्तसूरि संघ की स्थापना हुई जो सर्वत्र प्रगति पथ पर है ।
सम्मेलन में आये हुए जयपुर संघ ने पू. प्रवर्तिनीवर्या की प्रेरणा से श्रद्धय आचार्यश्री को जयपुर चातुर्मास की आग्रहभरी विनती की, जिसे आचार्य श्री ने स्वीकार कर लिया । चरितनायिकाजी गुरुवर्या की सेवा में पधार गयीं ।
परम श्रद्ध ेय आचार्य प्रवर श्रीमज्जिनआनन्दसागरसूरीश्वरजी अपने शिष्य मंडल सहित चातुर्मास हेतु जयपुर पधारे। खूब धूमधाम से जयपुर संघ ने स्वागत किया ।
आचार्य प्रवर के साथ चरितनायिकाजी का पहला ही चातुर्मास था । उनके गम्भीर शास्त्रीय ज्ञानयुक्त प्रभावशाली बाणी से आप बहुत प्रभावित हुईं । आपश्री को आचार्यदेव का अनुग्रह प्राप्त हुआ । आचार्यश्री की दीर्घ दृष्टि से आपकी विलक्षण प्रतिभा छिप न सकी। पू. प्रवर्तिनी जी को उन्होंने कहाआप बहुत भाग्यशाली हैं जो आपको ऐसी सुयोग्य गुणवती शिष्या ( सज्जन श्रीजी ) प्राप्त हुई हैं । यह भविष्य में अपने गच्छ को कोर्ति को खूब दीपायेंगी ।
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